बिना पर्याप्त आधार के अदालत को 'बदनाम' करने वाली याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने वाले वकीलों को अवमानना के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो वकीलों के खिलाफ कार्रवाई पर विचार करते हुए दोहराया और उनके मुवक्किल के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा कि कृत्रिम स्थिति पैदा करने के लिए उचित आधार के बिना जो वकील आवेदन पर हस्ताक्षर करके अदालत के खिलाफ निंदनीय टिप्पणी करता है, जिससे मामले को जज द्वारा अलग कर दिया जाए, वह अवमानना कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हो सकता है।
जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस एनआर बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि वकील के न्यायालय के प्रति दायित्वों और क्लाइंट के प्रति उसके कर्तव्य के बीच टकराव में, जो सबसे पहले प्रबल होता है, वह न्यायालय के प्रति उसका दायित्व है।
अदालत ने एम.वाई. शरीफ और अन्य बनाम नागपुर हाईोकर्ट के माननीय जज और अन्य [1955 एससीआर (1) 757] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कहा,
"यह वकीलों का कर्तव्य है कि वे अपने क्लाइंट को इस तरह के आरोप लगाने से बचने की सलाह दें।"
खंडपीठ अपने मुवक्किल/प्रतिवादी भीष्म हीरालाल पाहुजा की ओर से वकील मीनल जयवंत चंदनानी के जूनियर वकील जोहेब मर्चेंट के माध्यम से दायर प्रीसीप (मामले को प्रसारित करने के लिए आवेदन) पर विचार कर रही थी। उक्त मामला अखबार में प्रकाशित लेख से संबंधित है, जिसमें जस्टिस साम्ब्रे पर आक्षेप लगाए गए।
लेख में आरोप लगाया गया कि जस्टिस साम्ब्रे मामले में याचिकाकर्ता के प्रति पक्षपाती हैं और उनके साथ संबंध बनाए रखने के लिए उन्हें जमानत देंगे। इसमें आगे कहा गया कि जस्टिस साम्ब्रे के खिलाफ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के पास शिकायत दर्ज की गई।
जब अदालत में पूछताछ की गई तो वकील मीनल जयवंत चंदनानी, जिनके अधीन वकील ज़ोहेब मर्चेंट काम करते हैं, प्रेसिपी की सामग्री पर कायम रहे। हालांकि, जब अदालत ने देखा कि दोनों वकीलों का आचरण अदालतों को बदनाम कर रहा है और कृत्रिम स्थिति पैदा कर रहा है, जिससे मामले को आगे न उठाया जाए। अदालत ने दर्ज किया कि वकीलों ने बिना शर्त माफी मांगी।
अदालत ने वकीलों के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताई।
यह देखा गया,
"जब रजिस्ट्री से यह पूछताछ की गई कि किसने प्रिसीप जमा किया तो यह बताया गया कि इन दोनों वकीलों ने प्रिसिपी जमा की है और उस समय रजिस्ट्री ने उन्हें ऐसा करने से परहेज करने की सलाह दी थी। कुछ समय बाद ये दोनों वकील वापस आया और रजिस्ट्री पर प्रिसिपी स्वीकार करने का आग्रह किया।"
तदनुसार, अदालत ने अब पिंपरी-चिंचवड़ के पुलिस आयुक्त को प्रतिवादी भीष्म पाहुजा पर अवमानना नोटिस की सेवा सुनिश्चित करने और समाचार पत्र 'राजधर्म' का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसने निंदनीय लेख प्रकाशित किया।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर काफी हद तक भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि जब वकील अदालत को बदनाम करने वाली याचिकाओं पर हस्ताक्षर करते हैं तो वे क्लाइंट के निर्देशों के पीछे छिप नहीं सकते। अदालत ने कहा कि वह इस बात पर विचार करेगी कि क्या वकीलों द्वारा मांगी गई बिना शर्त माफी वास्तविक है।
यह निष्कर्ष निकाला,
“पीठ के जजों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने समक्ष लाए गए विवादों का निर्णय किसी भी व्यक्तिगत पूर्वाग्रह से मुक्त होकर करें। उपरोक्त वकील और वादी, जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे पक्ष कृत्रिम धारणा बनाते हैं कि अदालतों और जजों को बदनाम करके वे अलग होने का आदेश सुरक्षित कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में हमारा विचार है कि इस तरह का व्यवहार करने वाले वकीलों और वादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके सख्ती से निपटा जाना आवश्यक है।''
मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी 2024 को होगी।
ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें