जबरदस्ती किए जाने पर भी पति और पत्नी के बीच के यौन संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Update: 2024-09-30 08:24 GMT

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित बलात्कार के दोषसिद्धि और सजा का आदेश इस आधार पर खारिज कर दिया कि आरोपी और पीड़िता, जो कि बालिग है और कानूनी रूप से विवाहित है, इसलिए दोनों के बीच यौन संबंध भले ही जबरदस्ती किया गया हो, उसे बलात्कार नहीं माना जा सकता।

जस्टिस मालाश्री नंदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

"आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया कि अगर पत्नी 15 साल से अधिक उम्र की है तो पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाता।”

पति द्वारा अपनी पत्नी (15 वर्ष से अधिक आयु) के साथ जबरदस्ती और बिना सहमति के संभोग करना बलात्कार के दायरे से बाहर है।

मामले के तथ्यों से पता चलता है कि 02 अगस्त 2014 को सूचनाकर्ता (पिता) द्वारा एक FIR दर्ज कराई गई। इसमें आरोप लगाया गया कि उसकी बेटी (पत्नी) लापता हो गई। बाद में आरोपी-अपीलकर्ता (पति) के घर से बरामद किया गया और आईपीसी की धारा 342, 366 और 376 के तहत मामला दर्ज किया गया।

सेशन कोर्ट ने 10 अगस्त 2023 के फैसले और आदेश के तहत आरोपी को आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी ठहराया और उसे सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।

हालांकि अपीलकर्ता ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए दावा किया कि वह और कथित पीड़िता एक दूसरे से प्यार करते थे। वह स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर उसके साथ भाग गई थी। यह तर्क दिया गया कि यात्रा के उक्त छह घंटों के दौरान, पीड़िता ने कोई शोर-शराबा या विरोध नहीं किया और न ही अपने माता-पिता या किसी रिश्तेदार को घटना के बारे में बताया। इसके बादबपीड़िता ने मुस्लिम रीति-रिवाज के अनुसार उसके साथ विवाह कर लिया। पुलिस द्वारा बरामद किए जाने तक डेढ़ महीने तक पति-पत्नी के रूप में उसके साथ रही।

दूसरी ओर, अतिरिक्त लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि पीड़िता के साक्ष्य के अनुसार आरोपी-अपीलकर्ता ने उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए। हालांकि उसका ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था।

कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान से यह स्पष्ट है कि जब वह अपने माता-पिता के घर से निकली थी, तब वह वयस्क लड़की थी।

“अपीलकर्ता के खिलाफ कोई आरोप नहीं है कि अपीलकर्ता ने पीड़िता के साथ जगीरोड जाने पर बल प्रयोग किया। यह भी प्रतीत होता है कि उनकी शादी हुई थी। वे पति-पत्नी के रूप में साथ रहते थे। हालांकि, पीड़िता ने कहीं भी यह नहीं कहा कि उसे आरोपी के घर में कैद करके रखा गया था, जिसके कारण वह किसी भी व्यक्ति से बातचीत करने में असमर्थ थी। अदालत ने कहा कि पीड़िता अपने साथ मोबाइल फोन भी ले गई लेकिन उसने अपने माता-पिता को यह नहीं बताया कि अपीलकर्ता ने उसे अपने घर में बंधक बना लिया। उससे शादी कर ली है और उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथ बलात्कार किया।”

इसने पाया कि पीड़िता ने अपीलकर्ता के साथ अपनी शादी के समय कोई शोर नहीं मचाया। हालांकि पीड़िता को अपने माता-पिता या किसी अन्य परिवार के सदस्य को इस मामले की जानकारी देने का अवसर मिला, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।

अदालत ने माना कि आरोपी और पीड़िता कानूनी रूप से विवाहित हैं और पीड़िता बालिग है। इसलिए दोनों के बीच जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जा सकता। अदालत ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी/अपीलकर्ता के खिलाफ सभी उचित संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा है।

इस प्रकार, अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित विवादित फैसले और आदेश खारिज कर दिया।

केस टाइटल: मोहम्मद फरीद अली बनाम असम राज्य और अन्य।

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