तय समय के अंदर रिजेक्ट न होने पर वॉलंटरी रिटायरमेंट अपने आप मंज़ूर माना जाएगा, बाद में टेक्निकल इस्तीफ़े की मांग गलत: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि अगर तय समय के अंदर वॉलंटरी रिटायरमेंट को साफ़ तौर पर रिजेक्ट नहीं किया जाता है तो उसे अपने आप मंज़ूर मान लिया जाएगा। बाद में टेक्निकल इस्तीफ़े की कोई भी मांग पहले से लागू हो चुके रिटायरमेंट को खत्म नहीं कर सकती।
मामले के तथ्य
कर्मचारी इंडियन कोस्ट गार्ड में प्रधान सहायक इंजीनियर के तौर पर काम कर रहा था। 2016 में उसने UPSC के ज़रिए डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ एरोनॉटिकल क्वालिटी एश्योरेंस (DGAQA) में सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर के पद के लिए अप्लाई किया।
इस पद के लिए चुने जाने के बाद उसने जून 2017 में वॉलंटरी रिटायरमेंट के लिए एक एप्लीकेशन दी, जिसमें उसने नई भूमिका में अपनी नियुक्ति की तारीख से या मंज़ूरी के तीन महीने के अंदर, जो भी पहले हो, रिटायरमेंट लागू करने की मांग की।
कोस्ट गार्ड अधिकारियों ने उसके एप्लीकेशन को साफ़ तौर पर रिजेक्ट नहीं किया बल्कि बार-बार उसकी प्रोसेसिंग में देरी की, और बाद में उसे टेक्निकल इस्तीफ़ा देने का निर्देश दिया। इसलिए, उसने फरवरी 2018 में अपना इस्तीफ़ा दे दिया और बाद में उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। फिर उसने मार्च 2018 में DGAQA में औपचारिक रूप से ज्वाइन किया।
कर्मचारी ने एक रिट याचिका दायर करके हाई कोर्ट का रुख किया यह तर्क देते हुए कि उसके वॉलंटरी रिटायरमेंट को अपने आप लागू मान लिया जाना चाहिए।
कर्मचारी ने तर्क दिया कि ऑफिस मेमोरेंडम के अनुसार यदि वॉलंटरी रिटायरमेंट के लिए आवेदन को उस तारीख से तीन महीने के भीतर रिजेक्ट नहीं किया जाता है जिस तारीख से इसे लागू होना है, तो इसे स्वीकार मान लिया जाता है।
कर्मचारी ने ज़ोर देकर कहा कि उसका वॉलंटरी रिटायरमेंट ज़्यादा से ज़्यादा 1 फरवरी 2018 तक प्रभावी हो गया था क्योंकि उस तारीख तक नई पोस्ट पर उसकी नियुक्ति की जानकारी कोस्ट गार्ड को दे दी गई थी और उसके रिटायरमेंट के अनुरोध को रिजेक्ट नहीं किया गया था। उसने तर्क दिया कि प्रतिवादियों द्वारा बाद में टेक्निकल इस्तीफ़े की मांग दबाव में जारी की गई थी और यह उसके वॉलंटरी रिटायरमेंट को रद्द नहीं कर सकती। इसलिए उसने तर्क दिया कि उसे सेवा से वॉलंटरी रिटायर माना जाना चाहिए, और उसे सभी संबंधित पेंशन लाभ मिलने चाहिए।
दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि तीन महीने के बाद कर्मचारी के वॉलंटरी रिटायरमेंट की ऑटोमैटिक मंज़ूरी का कोई अनुमान नहीं था। कोर्ट के नतीजे
कोर्ट ने पाया कि कर्मचारी ने अपनी वॉलंटरी रिटायरमेंट को DGAQA में अपनी अपॉइंटमेंट से या मंज़ूरी के तीन महीने के अंदर, जो भी पहले हो से लागू होने की शर्त रखी थी। यह भी देखा गया कि प्रतिवादियों का कम्युनिकेशन VRS एप्लीकेशन को रिजेक्ट करना नहीं था बल्कि सिर्फ़ कुछ स्पष्टीकरण मांगे गए थे। कर्मचारी की अपॉइंटमेंट के बारे में कोस्ट गार्ड को 1 फरवरी 2018 को बताया गया था और उस तारीख से पहले कोई रिजेक्शन जारी नहीं किया गया था इसलिए उसका वॉलंटरी रिटायरमेंट फरवरी 2018 से लागू हो गया।
कोर्ट ने माना कि बाद में टेक्निकल इस्तीफ़े की मांग और कर्मचारी का मजबूरन पालन करना, पहले से ही प्रभावी हो चुके रिटायरमेंट को रद्द नहीं कर सकता। नतीजतन कोर्ट ने घोषणा की कि कर्मचारी को 1 फरवरी 2018 से वॉलंटरी रिटायर माना जाएगा जिससे वह CCS (पेंशन) नियम 1972 के नियम 48(A) के तहत पेंशन लाभ का हकदार हो गया। इन बातों को ध्यान में रखते हुए कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका को कोर्ट ने मंज़ूर कर लिया।