खाली सीटें होने के बावजूद अदालत यूनिवर्सिटी को नया काउंसलिंग राउंड कराने का आदेश नहीं दे सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वह किसी यूनिवर्सिटी को नया काउंसलिंग राउंड आयोजित करने का आदेश नहीं दे सकती, भले ही कुछ सीटें खाली रह गई हों।
अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रवेश प्रक्रिया को एक निश्चित समय पर समाप्त होना चाहिए और इसे अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर की, जिसमें एक अभ्यर्थी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) को LLB कोर्स में एडमिशन के लिए स्पॉट राउंड-V काउंसलिंग कराने का निर्देश देने की मांग की थी।
अभ्यर्थी अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी से है। उसने आरोप लगाया कि डीयू ने स्पॉट राउंड-IV (12 सितंबर को समाप्त) के बाद 98 सीटों की स्थिति जानबूझकर छिपाई और उनमें से कई सीटें अब भी खाली थीं। उसने यूनिवर्सिटी से ओबीसी श्रेणी की खाली सीटों की जानकारी मांगी थी पर कोई उत्तर नहीं मिला।
खंडपीठ ने एकल पीठ का आदेश बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि डीयू की प्रवेश प्रक्रिया 30 सितंबर को समाप्त हो चुकी है और नया काउंसलिंग राउंड आयोजित नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि अभ्यर्थी ने खुद स्वीकार किया कि उसने CUET-PG 2025 परीक्षा में 151 अंक प्राप्त किए, जबकि ओबीसी श्रेणी में स्पॉट राउंड-IV की कटऑफ 155 अंक थी। इसलिए वह पात्र नहीं था।
न्यायालय ने कहा,
“यदि ऐसे निर्देश जारी कर दिए जाएं तो यह एक अराजक और अंतहीन स्थिति पैदा कर देगा। हर अपात्र उम्मीदवार अदालत में आकर यह मांग करेगा कि जब तक सभी सीटें भर नहीं जातीं, यूनिवर्सिटी को काउंसलिंग कराते रहना चाहिए, चाहे उसके अंक कितने भी हों।”
डीयू के वकील ने भी कहा कि भले ही स्पॉट राउंड-IV के बाद कुछ सीटें खाली रह गई हों, लेकिन यह अपने आप में यूनिवर्सिटी को एक और राउंड आयोजित करने के लिए बाध्य नहीं करता।
अदालत ने कहा कि प्रवेश प्रक्रिया को एक बिंदु पर समाप्त होना ही चाहिए। यूनिवर्सिटी ने पहले ही चार स्पॉट राउंड आयोजित किए थे और प्रशासनिक रूप से उसे बंद करना उचित निर्णय था।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि अभ्यर्थी यह नहीं दिखा सका कि अदालत किसी यूनिवर्सिटी को नया काउंसलिंग राउंड कराने का मैंडमस (अनिवार्य आदेश) जारी करने का अधिकार रखती है।
अंत में अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्रवेश प्रक्रिया में “अंतिमता” आवश्यक है। अदालतें इसे प्रशासनिक विवेकाधिकार के क्षेत्र में हस्तक्षेप करके अनिश्चितकाल तक नहीं बढ़ा सकतीं।