MCOCA, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल कैदियों को फोन कॉल की सुविधा न देना मनमाना नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट का प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण

Update: 2025-01-30 05:55 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रथम दृष्टया, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MACOCA) और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत आतंकवादी गतिविधियों और अपराधों में शामिल कैदियों को टेलीफोन कॉल की सुविधा न देना मनमाना नहीं है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा,

"प्रथम दृष्टया महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत आतंकवादी गतिविधियों और अपराधों में शामिल कैदी को पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना नियमित टेलीफोन और इलेक्ट्रॉनिक संचार की सुविधा न देना मनमाना या अनुचित नहीं माना जा सकता।"

खंडपीठ एक कैदी- सैयद अहमद शकील द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें दिल्ली जेल नियम, 2018 के नियम 631 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई। नियम के अनुसार आतंकवादी गतिविधियों, MACOCA Act, सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम और कई जघन्य अपराधों में शामिल कैदी सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था के हित में इस सुविधा के लिए पात्र नहीं होंगे।

इसमें यह भी कहा गया कि जेल अधीक्षक को उप महानिरीक्षक (रेंज) की पूर्व स्वीकृति के साथ व्यक्तिगत मामले के आधार पर उचित निर्णय लेने का अधिकार होगा।

अदालत ने कहा,

"आक्षेपित नियम यह भी निर्दिष्ट करता है कि जेल अधीक्षक को उप महानिरीक्षक (रेंज) की पूर्व स्वीकृति के आधार पर व्यक्तिगत मामलों में उचित निर्णय लेने का अधिकार है। इस प्रकार, विचाराधीन सुविधाओं से इनकार करना पूर्ण नहीं है। यह तभी स्वीकार्य है, जब सार्वजनिक हित और सुरक्षा से समझौता न किया गया हो।”

इसमें कहा गया कि ऐसे मामलों में जहां विनियमित तरीके से संचार सुविधाएं प्रदान करना सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था के हित के लिए हानिकारक नहीं माना जाता है, विवादित नियम उन कैदियों को भी ऐसी सुविधाएं प्रदान करने की अनुमति देता है जो अपराध में शामिल हैं।

शकील के वकील ने प्रस्तुत किया कि कैदियों की फोन कॉल प्रणाली की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और विनियमित करने के लिए 2022 में सर्कुलर जारी किया गया। हालांकि, उक्त सुविधा को पहले प्रदान की जा रही सप्ताह में पांच कॉल के बजाय सप्ताह में केवल एक बार ही सीमित कर दिया गया।

यह भी कहा गया कि अन्य कैदियों या विचाराधीन कैदियों को एक दिन में एक कॉल की सुविधा प्रदान की गई।

शकील का कहना था कि अप्रैल, 2024 के बाद से उनका अपने परिवार से कोई संपर्क नहीं हो पाया है, क्योंकि उन्हें टेलीफोन कॉल सुविधा से वंचित किया जा रहा है।

यह तर्क दिया गया कि कैदियों के बीच संचार की आवृत्ति के संबंध में भेदभाव मनमाना और अनुचित होगा।

खंडपीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और इसे अगली सुनवाई के लिए 01 अप्रैल को सूचीबद्ध किया।

केस टाइटल: सैयद अहमद शकील बनाम सेंट्रल जेल नंबर 8, तिहाड़ जेल और अन्य।

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