PCPNDT Act | जेंडर टेस्ट मामले में FIR पर रोक नहीं, पुलिस जांच भी संभव: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-05-16 09:27 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पूर्व-गर्भाधान और पूर्व-प्रसव नैदानिक तकनीक (PCPNDT) अधिनियम 1994 के तहत अपराध संज्ञेय (cognizable) हैं। इसके तहत FIR दर्ज करने या पुलिस जांच पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि भले ही अधिनियम की धारा 28 में कहा गया कि अदालत केवल शिकायत के आधार पर संज्ञान ले सकती है। फिर भी यह धारा FIR के रजिस्ट्रेशन या पुलिस जांच व चार्जशीट दायर करने पर रोक नहीं लगाती।

कोर्ट ने कहा,

“PCPNDT Act की धाराओं और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के सामंजस्यपूर्ण विश्लेषण से स्पष्ट है कि FIR दर्ज करना या जांच करना इस कानून के तहत निषिद्ध नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि PCPNDT Act के नियम 18A(3)(iv) में सिर्फ यह उल्लेख है कि जहां तक संभव हो पुलिस जांच से बचा जाए, जिससे स्पष्ट है कि पुलिस जांच पूरी तरह से वर्जित नहीं है और ज़रूरत पड़ने पर पुलिस जांच की जा सकती है।

यह टिप्पणी कोर्ट ने एक रिसर्च संस्थान और दो डॉक्टरों की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने की मांग की थी।

याचिकाकर्ताओं का दावा था कि निरीक्षण के दौरान न तो कोई जब्ती मेमो (Seizure Memo) दिया गया और न ही CCTV का DVR जब्त करने का कोई कानूनी आधार था।

उन्होंने यह भी कहा कि संस्थान को अल्ट्रासोनोग्राफी प्रशिक्षण देने की अनुमति नहीं होने का आरोप बेबुनियाद है।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में संज्ञान FIR या चार्जशीट के आधार पर नहीं बल्कि जिला उपयुक्त प्राधिकारी (DAA) द्वारा अलग से दाखिल शिकायत पर लिया गया।

अंत में कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के तर्क मुकदमे के दौरान विचारणीय होंगे। शिकायत की शुरुआत में ही उसे रद्द करने का आधार नहीं बन सकते।

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