अंतरिम निषेधाज्ञा पर केवल नोटिस जारी करने का आदेश अपील योग्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट का स्पष्ट निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में यह साफ कर दिया कि अंतरिम निषेधाज्ञा (इंजंक्शन) के लिए दायर आवेदन पर केवल नोटिस जारी करने का आदेश न तो निषेधाज्ञा देने के समान है और न ही उसे अस्वीकार करने के रूप में देखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि ऐसा आदेश न तो अंतिम निर्णय है और न ही अपील योग्य, इसलिए इसे वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 13 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने यह फैसला परपेचुअल विज़न एलएलपी एवं अन्य द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए सुनाया। अपील में साकेत स्थित कॉमर्शियल कोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें अदालत ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह आदेश 3 नवंबर, 2025 को पारित हुआ था, जिसके तहत सभी उपलब्ध माध्यमों जिसमें इलेक्ट्रॉनिक संप्रेषण भी शामिल है, से समन भेजने के निर्देश दिए गए। साथ ही लिखित बयान और दस्तावेजों की स्वीकृति या अस्वीकृति के शपथपत्र दाखिल करने हेतु समय-सीमा तय की गई।
अपीलकर्ताओं ने दलील दी कि यह आदेश वस्तुतः उनके एकतरफा अंतरिम निषेधाज्ञा आवेदन को अस्वीकार करने के बराबर है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि यह आदेश अपील योग्य होना चाहिए। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि आदेश में “दलीलें सुनी गईं” जैसे शब्दों का प्रयोग यह दर्शाता है कि न्यायालय ने किसी प्रकार का ठोस निर्णय दे दिया।
खंडपीठ ने इन दलीलों को सिरे से नकारते हुए कहा कि आदेश केवल प्रक्रिया संबंधी है। इसका उद्देश्य प्रतिवादी को सुनवाई का अवसर देना है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे नोटिस आदेश को किसी भी प्रकार से अंतरिम निषेधाज्ञा पर अंतिम निर्णय नहीं माना जा सकता।
अदालत ने कहा, “विवादित आदेश न तो निषेधाज्ञा प्रदान करता है और न ही इसे अस्वीकार करता है। यह केवल प्रतिवादी को नोटिस जारी करने की प्रक्रिया है, जो सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 नियम 3 के तहत दी गई शक्ति का हिस्सा है।”
हाईकोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि विधायिका ने जानबूझकर आदेश 39 नियम 3 को अपील योग्य आदेशों की सूची से बाहर रखा ताकि महज प्रक्रिया संबंधी नोटिसों को अपील में न बदला जाए और न्यायिक कार्यवाही अनावश्यक रूप से लंबी न हो।
अपीलकर्ताओं द्वारा दिए गए तर्क कि यह आदेश अपील योग्य माना जाना चाहिए, अदालत ने खारिज करते हुए कहा कि केवल अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में नोटिस आदेश अपील योग्य माने जा सकते हैं, जब प्रतिकर या मूल स्थिति बहाल करना संभव न हो। अदालत ने यह भी कहा कि संपत्ति से जुड़े विवाद अथवा संपत्ति हस्तांतरण रोकने से संबंधित आदेश ऐसी दुर्लभ श्रेणी में नहीं आते, क्योंकि ऐसे मामलों में प्रतिकर या स्थिति बहाली जैसे उपाय उपलब्ध होते हैं।
इन सभी कारणों का उल्लेख करते हुए हाईकोर्ट ने अपील को अप्रभावी और अवैध बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि विवाद के मूल मुद्दों पर विचार करने की आवश्यकता ही नहीं बनती।
इस फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि प्रक्रिया संबंधी आदेशों को अपील के माध्यम से चुनौती देने से न्यायिक प्रक्रिया बाधित होती है। ऐसे आदेशों को अंतिम निर्णय नहीं माना जा सकता।