फाइनल सेलेक्शन लिस्ट में शामिल उम्मीदवार को नियुक्ति का अविभाज्य अधिकार नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट ने दोहराया

Update: 2024-05-04 08:38 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट के जज जस्टिस तुषार राव गेडेला की सिंगल बेंच ने डॉ. शशि भूषण बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी के मामले में रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए माना कि फाइनल सेलेक्शन लिस्ट में शामिल उम्मीदवार को भी नियुक्ति का अविभाज्य अधिकार नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि

डॉ. शशि भूषण (याचिकाकर्ता) ने दिल्ली यूनिवर्सिटी (प्रतिवादी) के कालिंदी कॉलेज के भूगोल विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए भर्ती प्रक्रिया में भाग लिया। याचिकाकर्ता प्रतीक्षा सूची में पहले उम्मीदवार थे। उषा रानी चयनित उम्मीदवारों की सूची में क्रमांक 1 पर थीं और उन्होंने उक्त पद पर कार्यभार ग्रहण किया। हालांकि, बाद में उन्होंने दूसरे कॉलेज में शामिल होने के लिए उक्त पद से इस्तीफा दे दिया और इस तरह उक्त पद रिक्त हो गया। याचिकाकर्ता को प्रतीक्षा सूची में नंबर 1 उम्मीदवार होने के बाद भी रिक्त पद की पेशकश नहीं की गई, इसलिए रिट याचिका दायर की गई।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी प्रतीक्षा सूची से उम्मीदवारों को बुलाकर रिक्त पदों को भरने के लिए बाध्य है।

दूसरी ओर प्रतिवादी ने तर्क दिया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी द्वारा जारी दिनांक 03.04.2024 के संचार के अनुसार यदि कोई उम्मीदवार पद पर शामिल होता है और बाद में इस्तीफा देता है, तो उचित प्रक्रिया और प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद ऐसे रिक्त पद के लिए नए सिरे से विज्ञापन जारी करना अनिवार्य होगा।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि दिनांक 03.04.2024 का पत्र सुदेश कुमार गोयल बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य के मामले में निर्धारित अनुपात के अनुसार जारी किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि चयनित उम्मीदवारों में से कोई शामिल होता है और फिर त्यागपत्र दे देता है तो इससे नई रिक्ति उत्पन्न होती है, जिसे उचित विज्ञापन जारी किए बिना और नई चयन प्रक्रिया का पालन किए बिना नहीं भरा जा सकता।

न्यायालय ने आगे कहा कि अंतिम चयन सूची में शामिल किसी भी उम्मीदवार को नियुक्ति का अविभाज्य अधिकार नहीं है। उपलब्ध एकमात्र अधिकार नियुक्ति के लिए विचार किए जाने का अधिकार है। न्यायालय ने शंकरसन दाश बनाम भारत संघ के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अधिसूचना केवल योग्य उम्मीदवारों को भर्ती के लिए आवेदन करने के लिए आमंत्रित करने के बराबर है और उनके चयन पर उन्हें पद पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता।

न्यायालय ने आगे कहा कि सरकार या राज्य को कुछ रिक्तियों को भरने का निर्देश देने के लिए परमादेश जारी नहीं किया जा सकता। अंतिम चयन सूची में चयनित अभ्यर्थी को विचार के अधिकार से अधिक कोई अधिकार नहीं है, लेकिन प्रतीक्षा सूची में शामिल अभ्यर्थी को विचार का अधिकार भी नहीं है।

उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- डॉ. शशि भूषण बनाम दिल्ली यूनिवर्सिटी

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