बहुत देर हो चुकी- दिल्ली हाइकोर्ट ने 2024 के आम चुनाव लड़ने के लिए 'पॉट' चुनाव चिन्ह आवंटित करने की VCK पार्टी की याचिका खारिज की

Update: 2024-04-13 09:43 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में विदुथलाई चिरुथैगल काची (VCK) पार्टी द्वारा 2024 के आम चुनाव लड़ने के लिए पॉट चिन्ह आवंटित करने के लिए दायर याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस सचिन दत्ता ने याचिका में कोई योग्यता नहीं पाते हुए ECI के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।

जस्टिस दत्ता ने कहा,

"प्रतिवादी के वकील ने यह भी सही तर्क दिया कि क्योंकि वर्ष 2024 के आगामी चुनाव के लिए चुनाव प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, इसलिए इसमें हस्तक्षेप करने के लिए बहुत देर हो चुकी है। फिर याचिकाकर्ता के पास जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 100 के तहत उपाय है।"

उपरोक्त निर्णय VCK द्वारा दायर याचिका में आया, जिसमें प्रतिवादी द्वारा जारी किए गए दिनांक 27.03.2024 का विवादित पत्र रद्द करने और याचिकाकर्ता को 2024 के आम चुनाव लड़ने के लिए पॉट चिन्ह आवंटित करने की मांग की गई।

27.03.2024 के उक्त आदेश के पारित होने से पहले ECI ने 21.03.2024 के अपने पत्र के माध्यम से VCK के समान चुनाव चिन्ह के आवंटन का अनुरोध अस्वीकार कर दिया था। उक्त पत्र को हाइकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई, जिसका निपटारा 27.03.2024 के आदेश के माध्यम से किया गया।

VCK ने तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए समान पॉट चिन्ह का उपयोग करने की मांग की।

27 मार्च, 2024 को ECI ने चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 10बी के तहत सामान्य चिह्न के रूप में "पॉट" की मांग करने वाला VCK का आवेदन खारिज कर दिया।

विशेष रूप से चुनाव चिह्न आदेश के पैरा 10बी में कहा गया कि जिस पार्टी ने दो मौकों पर रियायत का लाभ उठाया, वह किसी भी बाद के आम चुनाव में रियायत के लिए पात्र होगी बशर्ते कि पिछले अवसर पर जब पार्टी ने सुविधा का लाभ उठाया था तो संबंधित राज्य में आम चुनाव में पार्टी द्वारा खड़े किए गए सभी उम्मीदवारों द्वारा डाले गए वोट उस राज्य में डाले गए कुल वैध वोटों के एक प्रतिशत से कम नहीं थे।

न्यायालय ने उक्त पत्र पर गौर करते हुए कहा कि उक्त आदेश के पैरा 3 में उल्लिखित तकनीकी आधारों के अलावा आगामी आम चुनावों के लिए समान चुनाव चिन्ह की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करने का मुख्य आधार यह है कि याचिकाकर्ता चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 10बी (बी) के स्पष्टीकरण के पैरा (ii) के अनुसार पात्र नहीं है।

आक्षेपित पत्र में विशेष रूप से दर्ज किया गया कि याचिकाकर्ता ने चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 10बी के तहत अपेक्षित रियायत का लाभ उठाया। इसके अनुसार, उसने किसी अन्य अवसर के लिए सुविधा और रियायत का लाभ उठाने की पूर्व शर्त को पूरा नहीं किया, क्योंकि पिछले चुनावों में उसे डाले गए कुल वैध मतों का 1% भी प्राप्त नहीं हुआ, जो कि चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 के पैरा 10बी (बी) के स्पष्टीकरण (ii) के तहत निर्धारित न्यूनतम आवश्यकता है।

दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत तर्कों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद न्यायालय चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैरा 10बी (बी) की याचिकाकर्ता की व्याख्या के साथ तालमेल नहीं बिठा पाया।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने में न्यायालय ने चुनाव चिह्न आदेश के पैरा 10बी (बी) के भीतर स्पष्टीकरण (i) की विशिष्ट भाषा को ध्यान में रखा, जो स्पष्ट रूप से उन शर्तों को रेखांकित करता है, जिनके तहत रजिस्टर्ड गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी के उम्मीदवारों को समान चुनाव चिन्ह आवंटित करने की छूट अनुमेय है।

इसमें कहा गया कि इस तरह की छूट किसी राजनीतिक दल द्वारा लोकसभा के किसी भी दो आम चुनावों, किसी राज्य विधानसभा के किसी भी दो आम चुनावों या लोक सभा के एक आम चुनाव और राज्य विधानसभा के दूसरे आम चुनाव के दौरान पार्टी की पसंद के अनुसार ली जा सकती है।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने वास्तव में 2016 के तमिलनाडु और पुडुचेरी राज्य विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी इस छूट का लाभ उठाया। यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता ने पहले ही दो मौकों पर इस रियायत का लाभ उठाया, इसे प्राप्त करने के किसी भी आगे के प्रयास के लिए चुनाव चिह्न आदेश के पैरा 10बी (बी) के स्पष्टीकरण (ii) में उल्लिखित आवश्यकता का अनुपालन करना आवश्यक है। न्यायालय ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य का विरोध नहीं किया कि वह इस आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहा है।

याचिकाकर्ता द्वारा नए राज्यों में उम्मीदवार उतारने का निर्णय लेने पर रियायत की उपलब्धता के बारे में याचिकाकर्ता के तर्क पर विचार-विमर्श करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस तरह की व्याख्या चुनाव चिह्न आदेश के पैराग्राफ 10बी के साथ विरोधाभासी है। यह पैराग्राफ विशेष रूप से "लोक सभा" के चुनावों के लिए रियायत प्रदान करता है, बिना किसी राज्य-वार व्यवस्था बनाए।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यद्यपि किसी पार्टी के प्रदर्शन का मूल्यांकन उन राज्यों के आधार पर किया जाता है, जहां वह कुछ शर्तों को पूरा करने के लिए उम्मीदवार उतारती है, लेकिन यह याचिकाकर्ता जैसी पार्टी को आवश्यकताओं को पूरा किए बिना बार-बार रियायत मांगने की स्वतंत्रता नहीं देता।

इसके अतिरिक्त न्यायालय ने नोट किया कि 2021 के तमिलनाडु राज्य विधानमंडल चुनावों में समान चिह्न के लिए याचिकाकर्ता के अनुरोध को प्रतिवादी ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि राजनीतिक दल अधिकतम दो अवसरों पर ही समान चिह्न सुविधा का लाभ उठा सकता है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि यह तर्क याचिकाकर्ता द्वारा आगामी 2024 के आम चुनावों के लिए इसी तरह के अनुरोध पर भी समान रूप से लागू होगा।

न्यायालय ने प्रतिवादी के इस तर्क से सहमति जताई कि याचिकाकर्ता ने केरल के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल उम्मीदवार को मैदान में उतारने का अपना इरादा स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। इस प्रकार वह चुनाव चिह्न आदेश के पैराग्राफ 10बी (बी) के उप-खंड (i) में उल्लिखित शर्त को पूरा करने में विफल रहा।

इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की जिम्मेदारी है कि वह उन निर्वाचन क्षेत्रों की क्रम संख्या और नाम निर्दिष्ट करे जहां पार्टी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का इरादा रखती है। यह एक ऐसी आवश्यकता है, जिसे याचिकाकर्ता ने पूरा करने की उपेक्षा की है।

न्यायालय ने नोट किया,

“प्रतिवादी के वकील की इस दलील में दम है कि याचिकाकर्ता ने अपने आवेदन में खुद कहा कि याचिकाकर्ता केरल के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल 1 उम्मीदवार को मैदान में उतारने का इरादा रखता है। इसलिए पैराग्राफ 10बी (बी) के उप-खंड (i) में उल्लिखित शर्त की आवश्यकता पूरी नहीं हुई। इसके अलावा, पैराग्राफ 10बी (बी) के उप खंड (vii) के अनुसार, याचिकाकर्ता पर यह दायित्व है कि वह उन निर्वाचन क्षेत्रों की क्रम संख्या और नाम निर्दिष्ट करे जहां पार्टी उम्मीदवार खड़े कर रही है, जिसे याचिकाकर्ता करने में विफल रहा है। याचिकाकर्ता ने केवल उन निर्वाचन क्षेत्रों की संख्यात्मक संख्या का उल्लेख किया, जहां वह चुनाव लड़ना चाहता है, बिना प्रतीक आदेश के अनिवार्य प्रावधानों का पालन किए।”

प्रतिवादी के रुख के अनुरूप न्यायालय ने स्वीकार किया प्रतिवादी के वकील द्वारा यह भी सही ढंग से तर्क दिया गया कि वर्ष 2024 के आगामी चुनाव के लिए चुनाव प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, इसलिए इसमें हस्तक्षेप करने के लिए बहुत देर हो चुकी है। याचिकाकर्ता का उपाय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 के तहत निहित है।"

तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल- विदुथलाई चिरुथैगल काची बनाम ईसीआई

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