जामा मस्जिद के संरक्षित स्मारक होने पर हलफनामा दाखिल करें: दिल्ली हाईकोर्ट ने ASI से कहा
दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को निर्देश दिया कि वह जामा मस्जिद के संरक्षित स्मारक होने, उसके वर्तमान निवासियों ASI द्वारा की जा रही रखरखाव गतिविधियों और उससे प्राप्त राजस्व तथा उपयोग के बारे में हलफनामा दाखिल करे।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने यह निर्देश उन याचिकाओं के संबंध में जारी किया, जिनमें जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक के साथ-साथ विश्व धरोहर स्थल घोषित करने की मांग की गई।
याचिकाओं में भारत संघ, ASI और सरकार पर आरोप लगाया गया। दिल्ली सरकार जामा मस्जिद की सुरक्षा, संवर्धन और विकास करने में विफल रही। इसने दिल्ली वक्फ बोर्ड पर जामा मस्जिद के संबंध में अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन करने का भी आरोप लगाया।
23 अगस्त 2017 को न्यायालय ने ASI और संस्कृति मंत्रालय भारत संघ को वह फाइल पेश करने का निर्देश दिया, जिसमें जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित न करने का निर्णय लिया गया। 28 अगस्त 2024 को न्यायालय ने अपने निर्देशों को दोहराया और ASI को जामा मस्जिद से संबंधित मूल फाइलें पेश करने का निर्देश दिया।
जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक के रूप में दर्ज करने वाली फाइल आज तक न्यायालय के समक्ष पेश नहीं की गई।
27 सितंबर 2024 को, जब ASI अधिकारी ने न्यायालय के समक्ष कुछ नोटशीट और फाइल पेश की तो यह पाया गया कि उनमें जामा मस्जिद की संरक्षित स्मारक स्थिति के संबंध में कोई महत्वपूर्ण विवरण नहीं था।
इस प्रकार, न्यायालय ने ASI के एक सक्षम अधिकारी को अगली सुनवाई की तारीख पर मूल फाइल पेश करने का निर्देश दिया।
याचिकाओं में मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी को जामा मस्जिद का शाही इमाम नियुक्त किए जाने का मुद्दा भी उठाया गया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने शाही इमाम की उपाधि का इस्तेमाल किया, जिसके वे कानूनी रूप से हकदार नहीं हैं।
याचिकाकर्ताओं ने बुखारी के बेटे को नायब इमाम नियुक्त किए जाने की वैधता को भी चुनौती दी। दावा किया कि बुखारी को अपने बेटे को नियुक्त करने का कोई अधिकार नहीं है। 20 नवंबर, 2014 को हाईकोर्ट ने कहा कि बुखारी के बेटे को नियुक्त किए जाने से किसी व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं मिलेगा।
केस टाइटल: सुहैल अहमद खान बनाम भारत संघ एवं अन्य