आठ सप्ताह के भीतर भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना में CDS परीक्षा के माध्यम से महिलाओं को शामिल करने की याचिका पर निर्णय ले सरकार: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) परीक्षा के माध्यम से भारतीय सैन्य अकादमी, भारतीय नौसेना अकादमी और वायु सेना अकादमी में भर्ती के लिए महिला उम्मीदवारों को शामिल करने की मांग वाली याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को आठ सप्ताह के भीतर कानून के अनुसार कुश कालरा द्वारा दायर अभ्यावेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
अदालत ने पिछले साल 20 दिसंबर को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती देने वाली कालरा की याचिका का निपटारा किया।
यह अधिसूचना 21 अप्रैल को आयोजित होने वाली संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) परीक्षा के माध्यम से भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), भारतीय नौसेना अकादमी (INA), भारतीय सशस्त्र बलों की वायु सेना अकादमी (IAF) और अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (OTA) में भर्ती से संबंधित है।
यह याचिका इसलिए दायर की गई, क्योंकि कालरा के अभ्यावेदन का जवाब नहीं दिया गया। उनका कहना है कि विवादित अधिसूचना में महिलाओं को केवल उनके जेंडर के आधार पर IMA, INA और IAF के लिए आयोजित की जाने वाली परीक्षा में शामिल होने से अनुचित रूप से बाहर रखा गया।
यह प्रस्तुत किया गया कि अधिसूचना में महिलाओं को IMA, INA और IAF में आवेदन करने से प्रतिबंधित किया गया, जिसमें उल्लेख किया गया,
“महिला उम्मीदवारों पर केवल ओटीए में शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए विचार किया जा रहा है। उन्हें ओटीए को ही एकमात्र विकल्प के रूप में इंगित करना चाहिए।”
आगे कहा गया,
"अब जबकि रक्षा मंत्रालय ने NDA परीक्षा के माध्यम से महिलाओं के लिए अपनी प्रवेश बाधा को हटा दिया और महिला उम्मीदवारों की भर्ती की जा रही है तथा हर साल रिक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है तो इस बात का कोई आधार नहीं है कि महिलाओं को आईएमए, आईएनए और आईएएफ के लिए सीडीएस परीक्षा के माध्यम से क्यों नहीं भर्ती किया जाता है।"
इसमें कहा गया कि अधिसूचना योग्य महिला उम्मीदवारों को भारतीय सशस्त्र बलों के प्रमुख भारतीय प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण प्राप्त करने के अवसर से वंचित करती है, जो उनके करियर में उन्नति के अवसरों में बाधा बनती है।
याचिका में कहा गया,
"प्रतिवादियों द्वारा वर्षों से केवल जेंडर के आधार पर योग्य और इच्छुक महिला उम्मीदवारों को सीडीएस परीक्षा में बैठने से स्पष्ट रूप से वंचित करने का कार्य कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।"
केस टाइटल- कुश कालरा बनाम भारत संघ और अन्य।