दिल्ली हाइकोर्ट ने आपत्तिजनक वीडियो के कारण 2011 में स्टूडेंट के 'पूर्व-निर्धारित' निष्कासन के लिए JNU की आलोचना की

Update: 2024-04-05 10:37 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) द्वारा 2011 में स्टूडेंट का निष्कासन रद्द कर दिया। इसमें गंभीर प्रक्रियात्मक अनियमितताओं और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के पालन में कमी को उजागर किया गया।

जस्टिस सी हरि शंकर ने स्टूडेंट के खिलाफ पूर्वनिर्धारित इरादे के लिए JNU की आलोचना की और अनुशासनात्मक कार्यवाही में निष्पक्षता बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया। अदालत ने यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि यदि स्टूडेंट चाहे तो वह अपना मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (MCA) कोर्स पूरा करने दे।

जस्टिस शंकर ने कहा,

"याचिकाकर्ता के मामले में JNU ने जिस तरह से कार्यवाही की, वह प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों का महज मजाक है। यह JNU में प्रॉक्टोरियल जांच के सिद्धांतों के भी विपरीत है, जैसा कि इस न्यायालय ने स्वाति सिंह के मामले में पहले ही देखा। यह चिंता का विषय है कि JNU, जो प्रमुख यूनिवर्सिटी है, उसने इस तरह से काम किया। यह घटना आज 12 साल पुरानी है, इसलिए मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा।"

यह मामला MCA के दूसरे वर्ष के स्टूडेंट बलबीर चंद के निष्कासन से सम्बन्धित है, जिस पर साथी स्टूडेंट से जुड़े आपत्तिजनक वीडियो रखने का आरोप है। चंद को फरवरी, 2011 में खुद का बचाव करने का उचित अवसर दिए बिना निष्कासित कर दिया गया।

न्यायालय ने कहा,

"याचिकाकर्ता निश्चित रूप से प्रॉक्टोरियल जांच में कभी भी शामिल नहीं था, जिसका संदर्भ 11 फरवरी 2011 के उपरोक्त कारण बताओ नोटिस में दिया गया। JNU की वकील मीनाक्षी ने दलील दी कि उक्त जांच में 15 गवाहों के बयान दर्ज किए गए।

अदालत ने कहा,

“अगर ऐसा है तो JNU में प्रॉक्टोरियल जांच के लिए लागू नियमों के साथ-साथ प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुपालन की सबसे बुनियादी आवश्यकताओं के अनुसार याचिकाकर्ता को उक्त बयानों के साथ पेश किया जाना चाहिए, उक्त बयान देने वाले व्यक्तियों से जिरह करने का अवसर दिया जाना चाहिए और अपने बचाव में सबूत पेश करने चाहिए।”

स्वाति सिंह बनाम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी 2024 लाइव लॉ (डीईएल) 174 के मामले में विस्तार से बताए गए JNU में प्रॉक्टोरियल जांच करते समय पूरी की जाने वाली आवश्यकताओं पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने बताया कि आवश्यकता का कोई अनुपालन नहीं किया गया। खासकर तब जब तीसरा कम्युनिकेशन यानी 11 फरवरी 2011 का कारण बताओ नोटिस 2 फरवरी 2011 को JNU द्वारा याचिकाकर्ता को दी गई सुनवाई के एक सप्ताह के भीतर जारी किया गया।

न्यायालय ने जोर देकर कहा,

"तथ्य यह है कि JNU याचिकाकर्ता को उसके परिसर से हटाने के लिए पहले से ही निर्धारित इरादे से काम कर रहा है। यह 11 फरवरी 2011 को कारण बताओ नोटिस जारी करने और 12 फरवरी 2011 को उसके 24 घंटे के भीतर विवादित आदेश से भी स्पष्ट है। इसलिए याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल करने का अवसर केवल दिखावा है और इससे अधिक कुछ नहीं।"

न्यायालय ने याचिकाकर्ता को निष्कासित करने के निर्णय को निरस्त करते हुए तथा उसे अलग रखते हुए जैसा कि विवादित कार्यालय आदेश में निहित है।

कहा गया,

"यदि याचिकाकर्ता ऐसा करना चाहे तो उसे अपने MCA को पूरा करने के लिए JNU से संपर्क करना होगा। यदि वह ऐसा करता है तो JNU याचिकाकर्ता को अपना कोर्स पूरा करने की अनुमति देगा। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि इस रिट याचिका के लंबित रहने के परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को कोई पूर्वाग्रह नहीं हो सकता। विशेष रूप से इसलिए क्योंकि उसे निष्कासित करने का निर्णय अवैध पाया गया। यह सुनिश्चित करने के लिए JNU को उचित कदम उठाने होंगे कि याचिकाकर्ता अपने MCA कोर्स को सर्वोत्तम संभव तरीके से पूरा कर सके।”

न्यायालय ने याचिका को अनुमति देते हुए निष्कर्ष निकाला।

केस टाइटल- बलबीर चंद बनाम जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी

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