जज द्वारा स्थगन देने या संबंधित शिकायत समेकित करने से इनकार करना मामला ट्रांसफर का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी जज द्वारा मांगी गई तारीखों पर स्थगन देने या संबंधित शिकायत को समेकित करने से इनकार करना मामले को किसी अन्य जज को ट्रांसफर करने का आधार नहीं है।
जस्टिस संजीव नरूला ने कहा,
"समय-निर्धारण केस प्रबंधन का एक पहलू है और जब तक यह दुर्भावना से प्रेरित न हो, तब तक यह पक्षपात की उचित आशंका को जन्म नहीं दे सकता।"
कोर्ट ने चेक बाउंसिंग के तीन मामलों का सामना कर रहे व्यक्ति द्वारा दायर याचिका को 10,000 रुपये के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया, जिसमें शिकायत को प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत से किसी अन्य सक्षम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई।
उन्होंने प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एडं सेशन जज द्वारा मामला ट्रांसफर करने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी। तीनों शिकायत मामलों की सुनवाई संयुक्त वित्तीय आयुक्त (JMFC) के समक्ष एक साथ की जा रही थी।
जब मामले जिरह के लिए सूचीबद्ध किए गए तो याचिकाकर्ता के मुख्य वकील उपस्थित नहीं हो पाए और जूनियर वकील ने स्थगन की मांग की, जिसे स्वीकार कर लिया गया लेकिन 1000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
अगली तारीख को याचिकाकर्ता के वकील का अन्यत्र समय था। उन्होंने एक और स्थगन की मांग की, जिसे स्वीकार तो कर लिया गया लेकिन प्रत्येक मामले में 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
बाद में एक शिकायत में समय की कमी के कारण क्रॉस एग्जामिनेशन पूरी नहीं हो सकी और उसे स्थगित कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि साक्ष्य के दौरान मजिस्ट्रेट ने उत्तरों को ठीक से दर्ज नहीं किया। इस तरह हस्तक्षेप किया, जिससे गवाह की गवाही प्रभावित हुई।
अगली तारीख को याचिकाकर्ता के स्थगन का अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया और शिकायत मामले में क्रॉस एग्जामिनेशन का उसका अधिकार समाप्त कर दिया गया।
इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने खराब स्वास्थ्य के कारण स्थगन की मांग की। अनुरोध किया कि इन मामलों की सुनवाई तीसरी शिकायत के साथ की जाए। हालांकि, अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया और दोनों मामलों की सुनवाई अलग-अलग करने के लिए स्थगित कर दी गई।
यह तर्क दिया गया कि मेडिकल आधार पर स्थगन और एक संबद्ध शिकायत के साथ मामले को समेकित करने के उनका अनुरोध स्वीकार करने से इनकार करने तक की घटनाओं के क्रम ने इस उचित आशंका को जन्म दिया कि जज याचिकाकर्ता के विरुद्ध पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं।
इस दलील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि केवल यह तथ्य कि ट्रायल कोर्ट ने अंतिम बहस की तारीख आगे बढ़ा दी, अपने आप में कार्यवाही के संचालन में किसी भी प्रकार के पक्षपात या पूर्वाग्रह का संकेत नहीं देता है।
इसमें यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता ने तारीख में बदलाव पर सवाल उठाते हुए ट्रायल कोर्ट के समक्ष कोई औपचारिक आवेदन भी नहीं दिया। इस प्रकार पक्षपात का कोई भी आरोप उचित रूप से सिद्ध नहीं हो सकता।
जस्टिस नरूला ने कहा कि पर्याप्त आधार के बिना ट्रांसफर अनुरोधों पर विचार करने से न केवल पीठासीन अधिकारी में व्यक्त विश्वास कम होता है, बल्कि मुकदमे की प्रगति भी प्रभावित होती है।
अदालत ने कहा,
"नियमित केस-प्रबंधन निर्णयों को पीठासीन अधिकारी के पूर्वाग्रह या पक्षपात के साथ जोड़ना स्थानांतरण को उचित ठहराने के लिए आवश्यक उच्च सीमा को कमज़ोर करता है। वर्तमान मामले में आरोप काल्पनिक हैं और किसी भी ठोस सामग्री द्वारा समर्थित नहीं हैं। पक्षपात की वास्तविक संभावना को इंगित करने के बजाय ये कार्यवाही में देरी करने के प्रयास को दर्शाते हैं।"
अदालत ने आगे कहा,
"इस तरह के अनुरोध पर विचार करने से न्यायिक अधिकार कमज़ोर होने और मुकदमों के संचालन को अनुचित चुनौतियों को बढ़ावा मिलने का जोखिम होगा।"