निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता: दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मियों को थानों से गवाही देने की अनुमति देने वाले नोटिफिकेशन पर जताई चिंता

Update: 2025-09-10 08:47 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने  को कहा कि उपराज्यपाल (LG) द्वारा 13 अगस्त को जारी वह अधिसूचना जिसके तहत राजधानी के सभी पुलिस थानों को पुलिसकर्मियों की गवाही दर्ज करने और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये अदालत के समक्ष पेश होने की जगह नामित किया गया, प्रथम दृष्टया निष्पक्ष सुनवाई की अवधारणा से समझौता करती है।

चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि LG को स्थान निर्धारित करने का अधिकार है। हालांकि, सवाल यह है कि क्यों विशेष रूप से पुलिस थानों को ही नामित किया गया।

खंडपीठ ने कहा, 

“निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार अनुच्छेद 21 से निकलता है। सवाल यह है कि क्या अभियोजन पक्ष के गवाहों को अपने ही स्थान से गवाही देने की अनुमति देने से आरोपी के निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से समझौता नहीं हो रहा? आप कोई भी तटस्थ जगह तय कर सकते हैं। हमें आपके अधिकार पर आपत्ति नहीं है। लेकिन आखिर क्यों पुलिस थाने।”

यह टिप्पणी एडवोकेट राज गौरव द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई। गौरव ने दलील दी कि अधिसूचना निष्पक्ष और पारदर्शी आपराधिक मुकदमेबाजी की प्रक्रिया को कमजोर करती है, क्योंकि गवाहों का क्रॉस एग्जामिनेशन कार्यपालिका-नियंत्रित परिसर में होगी।

खंडपीठ ने गौरव से पूछा कि क्या अधिसूचना लागू भी हो रही है। इस पर उन्होंने बताया कि अधिसूचना आंशिक रूप से लागू है और समय-समय पर दिल्ली पुलिस की ओर से इस संबंध में परिपत्र जारी और वापस लिए जाते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि असली समस्या भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 266(3) के प्रावधान से जुड़ी है, जिसके तहत यह अधिसूचना लाई गई।

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा,

“हम यहां नए अधिकार बनाने के लिए नहीं बैठे हैं। आपको दिखाना होगा कि यह प्रावधान संविधान के किस अनुच्छेद से टकराता है। न्यायिक समीक्षा में कोई भी कानून या प्रावधान तभी रद्द हो सकता है, जब विधायी अक्षमता हो या वह संविधान का उल्लंघन करता हो।”

गौरव ने कहा कि यह अधिसूचना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, क्योंकि जहां पुलिसकर्मी थानों से गवाही देंगे वहीं अन्य गवाहों और आरोपियों की गवाही अदालत में होगी, जिससे असमानता की स्थिति पैदा होती है।

उन्होंने कहा कि पुलिसकर्मी को थाने से गवाही देने का फायदा मिल जाता है और इससे क्रॉस एग्जामिनेशन की निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं।

खंडपीठ ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा से पूछा,

“आपके अधिकार को चुनौती नहीं है परंतु पुलिस थाने ही क्यों राज्य ही अभियोजक है और राज्य ही जांच एजेंसी है। इसलिए तटस्थता ज़रूरी है। जिरह और गवाही ट्रायल का हिस्सा हैं न कि अभियोजन या जांच की प्रक्रिया का। यह स्थिति निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत से समझौता करती दिखती है।”

अदालत ने कहा कि गवाही दर्ज करने के लिए तटस्थ स्थान होना चाहिए ताकि आरोपी यह सुनिश्चित कर सके कि उसके ख़िलाफ़ पेश किए जा रहे सबूतों का उसे मुकाबला करने का पूरा अवसर मिले।

ASG शर्मा ने कहा कि अदालत की चिंताओं को संज्ञान में लिया गया और वे अगली तारीख को इस मुद्दे पर जवाब देंगे।

अब यह मामला 10 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, जब इसी मुद्दे पर एक और PIL भी तय है।

टाइटल: राज गौरव बनाम भारत संघ एवं अन्य

Tags:    

Similar News