दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों के कर्मियों को विकलांगता पेंशन देना किसी प्रकार की उदारता नहीं है, बल्कि यह उनकी सेवाओं और बलिदानों की न्यायसंगत स्वीकृति है, जो उनकी विकलांगता या बीमारियों के रूप में सामने आती है।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने कहा कि विकलांगता पेंशन देने का लाभ उदारतापूर्वक व्याख्यायित किया जाना चाहिए और पात्र लाभार्थियों को दिया जाना चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"यह पेंशन सुनिश्चित करती है कि वह सैनिक, जो सेवा शर्तों के कारण घायल या विकलांग होता है, उसे सहायता के बिना न छोड़ा जाए और वह आर्थिक सुरक्षा और गरिमा के साथ जीवन यापन कर सके। यह राज्य की जिम्मेदारी को बनाए रखने का एक उपाय है, जो उन सैनिकों के प्रति है, जिन्होंने राष्ट्र की सेवा साहस और समर्पण से की है।"
यह टिप्पणी केंद्र सरकार द्वारा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की गई, जिनमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के आदेशों को चुनौती दी गई थी। AFT ने संबंधित कर्मियों को विकलांगता पेंशन देने का आदेश दिया था।
मामला यह था कि सेवा में रहते हुए सैन्यकर्मियों को किसी बीमारी के कारण विकलांगता हो गई, जबकि भर्ती के समय वे इस बीमारी से पीड़ित नहीं थे।
पीठ के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या ऐसी बीमारी या विकलांगता को सेवा से सम्बद्ध या सेवा द्वारा बढ़ी हुई माना जाएगा
कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों के जवान अत्यंत कठोर और अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं। चाहे वह दूर-दराज का इलाका हो, दुर्गम स्थल हो, अथवा वायु या जल में जहां हर दिन जीवित रहना एक चुनौती होती है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि रिलीज मेडिकल बोर्ड (RMB) की यह जिम्मेदारी है कि यदि वह यह निष्कर्ष निकालता है कि बीमारी या विकलांगता सेवा से सम्बद्ध नहीं है तो उसके लिए ठोस और तर्कसंगत कारण बताए।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि पीस स्टेशन पर तैनाती होने के बावजूद भी सैनिक की सेवा Inherently तनावपूर्ण होती है जिसमें अनुशासन, लंबे कार्य घंटे, सीमित व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और हर समय तैनाती के लिए तैयार रहने की मानसिकता शामिल है।
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ यह कह देना कि कोई बीमारी लाइफस्टाइल डिसऑर्डर है, विकलांगता पेंशन को नकारने का पर्याप्त कारण नहीं हो सकता, जब तक मेडिकल बोर्ड ने व्यक्ति विशेष से जुड़े तथ्य दर्ज कर उनकी जांच न की हो।
अंततः कोर्ट ने केंद्र सरकार की याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि प्राइमरी हाईपरटेंशन (Primary Hypertension) के आधार पर विकलांगता पेंशन का दावा सिर्फ इस आधार पर नहीं नकारा जा सकता कि बीमारी पीस स्टेशन पर प्रकट हुई थी।