फौजी की बीमारी को माना जाएगा ड्यूटी से जुड़ा, बोझ सरकार पर: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-08-30 09:29 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए साफ़ किया कि अगर कोई जवान या अफसर पूरी तरह स्वस्थ रहकर सेना में भर्ती होता है। सेवा के दौरान उसे कोई बीमारी हो जाती है तो यह बीमारी सैन्य सेवा से जुड़ी हुई मानी जाएगी। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में जवान को खुद यह साबित करने की ज़रूरत नहीं कि बीमारी ड्यूटी के कारण हुई है, बल्कि यह ज़िम्मेदारी सरकार या नियोक्ता की कि वह ठोस कारणों के साथ दिखाए कि बीमारी का सेना से कोई लेना-देना नहीं है।

मामला वायुसेना के एक पूर्व वारंट ऑफिसर का है, जिन्होंने लगभग 38 साल सेवा दी। भर्ती के समय वह पूरी तरह स्वस्थ थे और खुद का मेडिकल डिक्लेरेशन भी दिया। बाद में उन्हें प्राइमरी हाईपरटेंशन हो गया। मेडिकल बोर्ड ने उनकी अक्षमता तीस प्रतिशत आंकी, मगर यह कहकर पेंशन से इनकार कर दिया कि बीमारी 'पीस स्टेशन' पर हुई। इसका सेना की सेवा से कोई संबंध नहीं है। अधिकारी ने इस फैसले को चुनौती दी और आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए डिसेबिलिटी पेंशन देने का आदेश दिया।

केंद्र सरकार इस आदेश को हाईकोर्ट में लेकर आई, लेकिन हाईकोर्ट ने भी साफ़ कहा कि जब कोई सैनिक भर्ती होता है तो उसे स्वस्थ माना जाता है। अगर बाद में कोई बीमारी आती है तो इसे सेवा से जुड़ा ही समझा जाएगा। मेडिकल बोर्ड ने बस यह लिख दिया कि बीमारी पीस स्टेशन पर हुई, लेकिन इसके लिए कोई अलग और ठोस वजह नहीं बताई गई। वहीं कमांडिंग ऑफिसर का सर्टिफिकेट साफ़ कहता था कि बीमारी किसी लापरवाही या ग़लती से नहीं हुई।

हाईकोर्ट ने कहा कि डिसेबिलिटी पेंशन एक लाभकारी प्रावधान है, इसे हमेशा सैनिकों के हक़ में ही पढ़ा जाना चाहिए। अदालत ने माना कि ट्रिब्यूनल ने सही निर्णय दिया। उसमें कोई गलती नहीं है। नतीजतन, केंद्र सरकार की याचिका खारिज कर दी गई और पूर्व वारंट ऑफिसर की डिसेबिलिटी पेंशन बहाल कर दी गई।

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