कैद में हथियारों तक पहुंच रखने वाले गैंग्स की मौजूदगी अच्छा संकेत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट ने बंदी की मौत पर जेल प्रशासन को फटकार लगाई
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में तिहाड़ जेल प्रशासन की इस दलील पर आपत्ति जताई कि जेल में दो प्रतिद्वंद्वी गैंग्स के बीच हुई झड़प के चलते एक बंदी की मौत के लिए वह जिम्मेदार नहीं है।
जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर ने कहा कि राज्य की यह जिम्मेदारी है कि वह आमजन की सुरक्षा सुनिश्चित करे, जिसमें जेल में बंद व्यक्ति भी शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा,
“इस तथ्य से कि इस मामले में दो प्रतिद्वंद्वी गैंग्स के बीच झगड़ा हुआ और उनके पास ऐसे हथियार या उपकरण मौजूद थे, जिनसे वे एक-दूसरे को चोट पहुंचा सके, जिससे एक बंदी की मौत हो गई। यह इस बात को दर्शाता है कि जेल प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वहन नहीं किया।”
यह मामला मई 2013 का है जब एक डकैती के मामले में दोषी ठहराया गया कैदी रिहाई से कुछ दिन पहले न्यायिक हिरासत में घायल हो गया और उसकी मृत्यु हो गई।
यह मामला पिछले 12 वर्षों से लंबित था क्योंकि राज्य मृतक के परिवार को मुआवज़ा देने की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर रहा था।
कोर्ट ने शुरुआत में जेल नियमावली और उन नियमों का उल्लेख किया जिनमें बंदियों की सुरक्षा और देखरेख का प्रावधान है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट पहले भी स्पष्ट कर चुके हैं कि कैदियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी जेल अधिकारियों पर होती है।
कोर्ट ने कहा,
“यह राज्य का दायित्व है कि वह अपनी हिरासत में मौजूद हर व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करे। भले ही मृतक का आपराधिक रिकॉर्ड रहा हो लेकिन यह तथ्य राज्य की उस जिम्मेदारी से मुक्ति नहीं दिलाता, जिसके अंतर्गत हर बंदी की जान की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।”
मामले के तथ्यों पर विचार करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ इसलिए कि दो गैंग्स के बीच झगड़ा हुआ और मृतक उसमें शामिल था, जेल प्रशासन अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता।
कोर्ट ने कहा,
“राज्य का कर्तव्य है कि जेलों में ऐसे गैंग्स को पनपने न दे और यह भी सुनिश्चित करे कि जेल के भीतर ऐसी गैंग प्रतिद्वंद्विताएं उभरकर सामने न आएं।”
इस संदर्भ में कोर्ट ने दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLSA) को निर्देश दिया कि वह मृतक के आश्रितों को दिए जाने वाले मुआवजे की गणना करे।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तावित दिल्ली जेल नियमों में संशोधन के तहत ऐसे बंदियों की मृत्यु पर मुआवजा देने की बात की गई है, जिनकी मृत्यु जेल में किसी अस्वाभाविक कारण से हुई हो।
कोर्ट ने कहा,
“ यह योजना अभी अधिसूचित नहीं हुई है, लेकिन यह योजना 'पीड़ित विमर्श' (Victimology) के सिद्धांत का अनुसरण करती है और राज्य की जिम्मेदारी तय करती है कि वह हिरासत में अस्वाभाविक मृत्यु के मामलों में प्रभावितों को मुआवजा दे।”
इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका का निस्तारण कर दिया।
टाइटल: शकीला बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली)