दिल्ली हाइकोर्ट ने जल निकासी व्यवस्था, जलभराव और यमुना नदी के पुनरुद्धार के प्रबंधन पर निर्देश जारी किए
दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में जल निकासी व्यवस्था के प्रबंधन जल निकायों के पुनरुद्धार, यमुना नदी सहित इसके बाढ़ के मैदानों और वर्षा जल संचयन पर कई निर्देश जारी किए।
एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि दिल्ली हर साल यमुना नदी के उफान का सामना कर रही है और पिछले साल तो स्थिति और भी खराब थी। जलभराव, बाढ़ और इससे जुड़ी नागरिक सेवाओं के पतन को चिरस्थायी मुद्दे मानते हुए पीठ ने कहा कि विभिन्न एजेंसियों या विभागों के बीच समन्वय का पूर्ण अभाव है।
न्यायालय ने कहा,
"वरिष्ठता के उचित स्तर पर एकीकृत कमान के साथ इस समस्या से निपटने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है, जो अंतर-विभागीय/एजेंसी और अंतर-सरकारी समन्वय को निर्बाध रूप से सुनिश्चित कर सके।"
साथ ही कहा गया कि कई एजेंसियों द्वारा नालों के प्रबंधन से एजेंसियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति पैदा होती है, जिसमें एजेंसी प्रबंधन गतिविधियों को पूरा करने में कमी के लिए दूसरी एजेंसी पर आरोप लगाती है।
अदालत ने कहा कि इससे दोषी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करना भी मुश्किल हो जाता है और बुनियादी ढांचे के ढहने के कारण होने वाली अव्यवस्था का खामियाजा राज्य और उसके नागरिकों को भुगतना पड़ता है।
कोर्ट ने आगे कहा,
“नालों के इस कुप्रबंधन के कारण शहर और उसके नागरिक मानसून के आने का इंतजार करते हैं, जबकि प्रशासनिक एजेंसियां बाढ़ न आने की कामना करते हुए शुतुरमुर्ग जैसा रवैया अपनाती हैं। वर्तमान जरूरतों को पूरा करने और भविष्य का अनुमान लगाने के लिए प्रशासकों को दूरदृष्टि की जरूरत है।”
इसके अलावा अदालत ने पिछले साल मानसून में पुराना किला रोड और मथुरा रोड पर हाई कोर्ट पूल में कैरिजवे और बंगलों में पानी भर जाने का न्यायिक संज्ञान लिया।
इसमें कहा गया कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि अधिकारियों की बहुलता के कारण नालों का कुप्रबंधन हुआ है। इस तरह के सभी नाले अंततः यमुना नदी में गिरते हैं, जिससे न केवल नदी प्रदूषित होती है बल्कि अंततः दिल्ली के लोगों को परेशानी होती है।
अदालत ने दिल्ली सरकार को यमुना नदी में गिरने वाले सभी 22 खुले नालों के प्रबंधन और संचालन की जिम्मेदारी विभाग या एजेंसी को सौंपने का निर्देश दिया। पीठ ने दिल्ली सरकार से ऐसे विभाग या एजेंसी की पहचान करने और 30 अप्रैल तक इस संबंध में आदेश जारी करने को कहा।
अदालत को बताया गया कि 1,367 जल निकायों में से 344 जल निकायों के लिए ग्राउंड ट्रुथिंग का काम पूरा हो चुका है और 272 जल निकायों को बहाल किया गया। साथ ही यह भी बताया गया कि 72 जल निकायों के जीर्णोद्धार का काम प्रगति पर है और कुल में से कई जल निकाय आज की तारीख में जमीन पर मौजूद नहीं हैं।
अदालत ने दिल्ली सरकार को शेष 1023 जल निकायों की ग्राउंड ट्रुथिंग के लिए जियो-टैगिंग और जियो-रेफरेंसिंग का काम 15 मई तक पूरा करने का निर्देश दिया। साथ ही निर्देश दिया कि ग्राउंड ट्रुथिंग के बाद जल निकायों के जीर्णोद्धार के लिए अनुमान 30 मई तक तैयार किए जाएं। साथ ही यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि जीर्णोद्धार किए गए जल निकायों का रखरखाव ठीक से हो और वे अतिक्रमण मुक्त रहें।
पीठ ने कहा इसलिए जीएनसीटीडी को राजस्व अभिलेखों में जल निकायों की प्रविष्टियां करने के लिए उचित उपाय करने चाहिए, इसके लिए प्रत्येक जल निकाय की जिम्मेदारी विशिष्ट अधिकारी को सौंपनी चाहिए, जो हर पखवाड़े ऐसे जल निकाय का दौरा कर इसके रखरखाव को सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा, जल निकायों के ऐसे संचालन और रखरखाव की गतिविधियों में जीएनसीटीडी द्वारा जनता की भागीदारी की संभावना तलाशी जा सकती है।
इसने जिला स्तरीय समिति के साथ-साथ दिल्ली एनसीटी स्तर की समिति का गठन किया, जो परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार होगी।
पीठ ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि 30 सितंबर तक 1362 सरकारी भवनों में वर्षा जल संचयन प्रणाली उपलब्ध कराई जाए।
इसने कहा कि दिल्ली सरकार आगामी मानसून सत्र के दौरान वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए निचले इलाकों में वर्षा जल संचयन प्रणाली या गड्ढे बनाने की संभावना तलाशेगी और इसे जन आंदोलन बनाने के लिए जनता की भागीदारी सुनिश्चित करेगी।
पीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को सभी संबंधित एजेंसियों के साथ समन्वय में यमुना नदी के बाढ़ के मैदानों से अतिक्रमण हटाने को सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया।
कोर्ट ने यह भी कहा
“जीएनसीटीडी को निर्देश दिया जाता है कि वह अपनी मौजूदा नीति के अनुसार अनधिकृत कॉलोनियों और झुग्गी झोपड़ी (जेजे) क्लस्टरों में सीवेज को इकट्ठा करने के लिए आवश्यक कार्य करे, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि 100% सीवेज को इकट्ठा किया जा सके और अनुपचारित सीवेज को यमुना नदी में न डाला जाए, बल्कि उसे इन-सीटू अपशिष्ट उपचार संयंत्रों में भेजा जाए और केवल उपचारित पानी को ही यमुना में छोड़ा जाए।”
न्यायालय ने दिल्ली सरकार को 2022 में दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा बताए गए 105 जलभराव वाले स्थानों पर कार्रवाई रिपोर्ट और कार्य योजना प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया, जहां अभी तक कार्रवाई नहीं की गई।
न्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट में पिछले साल दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा बताए गए 200 जलभराव वाले स्थानों पर कार्रवाई रिपोर्ट और कार्य योजना का विवरण शामिल होगा।
इसने कहा कि दिल्ली पुलिस ऐसी योजनाओं के कार्यान्वयन के दौरान सहायता करेगी, जिससे मानसून में डूबे शहर के बजाय एक सुव्यवस्थित शहर की परिकल्पना सुनिश्चित की जा सके।
मामले की सुनवाई अब 20 मई को होगी।
अदालत 2022 में अधिकारियों द्वारा वर्षा जल संचयन के प्रयासों की कमी और खासकर मानसून के दौरान भारी यातायात जाम को लेकर शुरू की गई स्वप्रेरणा जनहित याचिका पर विचार कर रही थी।
इससे पहले पीठ ने जल-जमाव के मुद्दे पर नागरिक अधिकारियों को फटकार लगाई थी और कहा था कि यहां जल निकासी व्यवस्था पूरी तरह से दयनीय है और बहुत खराब स्थिति में है।
अदालत द्वारा 18 जून 2022 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख पर संज्ञान लेने के बाद सुओ मोटो जनहित याचिका शुरू की गई।
केस टाइटल- कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम सरकार एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य।