ग़ैर-प्रतिभागी संस्था समय पर कर सकती है टेंडर को चुनौती, विलंब से परियोजना लागत बढ़ती है: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-08-20 09:54 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोई गैर-प्रतिभागी संस्था कुछ परिस्थितियों में अवसंरचना से जुड़ी निविदा (टेंडर) को चुनौती देने का अधिकार रख सकती है लेकिन ऐसी चुनौती उचित समय के भीतर ही दी जानी चाहिए।

चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि निविदा प्रक्रिया में भाग लेने वाले बोलीदाता भी परिस्थितियों के आधार पर निविदा बंद होने की तारीख से उचित समय के भीतर ही रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं ताकि इस बीच तृतीय पक्ष के अधिकार न बन जाएं, न ही अनुबंध किसी अन्य को दे दिया जाए और न ही कार्य प्रारम्भ हो। ऐसा करने से सार्वजनिक धन और समय की बर्बादी तथा परियोजना लागत में अनावश्यक वृद्धि से बचा जा सकेगा।

अदालत ने स्पष्ट किया कि सामान्यत: गैर-प्रतिभागी संस्था निविदा को चुनौती नहीं दे सकती। सुप्रीम कोर्ट ने National Highways Authority of India बनाम Gwalior-Jhansi Expressway Limited (2018) में भी कहा कि केवल वही पक्ष निविदा शर्तों के उल्लंघन को लेकर शिकायत कर सकते हैं, जिन्होंने निविदा प्रक्रिया में भाग लिया हो।

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने उस निविदा को चुनौती दी, जो उसके अनुबंध वापस लिए जाने के बाद निकाली गई। निविदा प्राधिकारी Security Printing And Mining Corporation Of India Ltd. ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने न तो निविदा में भाग लिया और न ही समय रहते उसकी शर्तों को चुनौती दी इसलिए उसे यह अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट ने माना कि 07.03.2025 को जारी की गई निविदा की जानकारी याचिकाकर्ता को थी लेकिन उसने उसी समय इसे चुनौती नहीं दी और तब तक इंतजार किया जब तक अनुबंध प्रतिवादी नंबर 3 को आवंटित नहीं कर दिया गया।

अदालत ने कहा,

“यह सर्वविदित है कि विशेषकर अवसंरचना परियोजनाओं में हर दिन की देरी भारी लागत वृद्धि का कारण बनती है। यह अक्सर उन व्यक्तियों/संस्थाओं की लापरवाही का परिणाम होता है, जो परियोजनाओं को खींचते या बाधित करते हैं।”

इन तथ्यों के आधार पर अदालत ने याचिकाकर्ता की रिट याचिका अस्वीकार कर दी।

केस टाइटल: Rotoffset Corporation बनाम Security Printing And Mining Corporation Of India Ltd.

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