सुरक्षा के तौर पर दिए गए पोस्ट डेटेड चेक भी बन सकते हैं देयता का हिस्सा, बाउंस होने पर लगेगी NI Act की धारा 138: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा वित्तीय देनदारी के लिए सुरक्षा के रूप में पोस्ट डेटेड चेक दिया गया और बाद में वह देनदारी वास्तविक रूप से कानूनी रूप से देय बन जाती है तो ऐसे चेक के बाउंस होने पर परिवर्तनीय लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) की धारा 138 लागू होगी।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की एकल पीठ ने कहा कि सुरक्षा के तौर पर दिए गए चेक का उद्देश्य यह होता है कि यदि किसी अनुबंध या ऋण के तहत देनदारी उत्पन्न होती है और भुगतान नहीं किया जाता तो उस स्थिति में चेक को भुनाया जा सके।
अदालत ने स्पष्ट किया,
“यदि कोई चेक किसी अनुबंध या ऋण के लिए सुरक्षा के रूप में दिया गया हो और बाद में उस अनुबंध या ऋण से उत्पन्न देनदारी कानूनी रूप से देय हो जाए, तो वह चेक, भले ही प्रारंभ में 'सुरक्षा' के लिए दिया गया हो, धारा 138 के प्रयोजन के लिए वास्तविक देनदारी के निर्वहन हेतु जारी चेक माना जाएगा।”
अदालत ने यह भी कहा कि धारा 138 तभी लागू होगी जब चेक किसी देनदारी या ऋण के भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया हो और प्रस्तुत किए गए चेक की राशि उस देनदारी के बराबर या उससे कम हो।
यह आदेश उस याचिका पर आया, जिसमें शिकायतकर्ता द्वारा दर्ज चेक बाउंस केस (NI Act की धारा 138) को रद्द करने और समन आदेश को निरस्त करने की मांग की गई।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि विवादित चेक केवल सिक्योरिटी चेक था और उसे शिकायतकर्ता द्वारा भुनाया नहीं जाना चाहिए था। अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता ने विशेष रूप से यह आरोप लगाया कि जब चेक बैंक में प्रस्तुत किया गया तब याचिकाकर्ता की देनदारी विद्यमान थी।
अदालत ने कहा,
“मुख्य प्रश्न यह है कि क्या चेक की प्रस्तुति की तिथि पर कोई कानूनी रूप से देय देनदारी मौजूद थी या नहीं, न कि यह कि चेक देने के समय देनदारी थी या नहीं।”
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के संपेली सत्यनारायण राव बनाम इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी लिमिटेड (2016) मामले का हवाला देते हुए कहा कि यदि चेक जारी किए जाने की तिथि पर देनदारी मौजूद है या वह राशि कानूनी रूप से वसूलने योग्य हो चुकी है तो धारा 138 लागू होगी।
लेनदेन के दस्तावेज़ों को देखते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि चेक शिकायतकर्ता द्वारा संभावित नुकसान की भरपाई हेतु सुरक्षा के रूप में लिया गया और जब उसे प्रस्तुत किया गया, तब वास्तविक देनदारी उत्पन्न हो चुकी थी।
इस आधार पर अदालत ने याचिकाकर्ता की याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में चेक को केवल सुरक्षा हेतु कहकर दायित्व से बचा नहीं जा सकता।