S. 319 CrPC | कॉग्निजेंस स्टेज पर जिस संदिग्ध को समन नहीं किया गया, उसे उसी मटेरियल के आधार पर बाद में समन नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह साफ किया कि एक बार जब किसी अपराध का कॉग्निजेंस ले लिया जाता है और चार्जशीट के कॉलम नंबर 12 (संदिग्ध) में रखे गए आरोपी को समन नहीं किया जाता है तो उसे रिकॉर्ड पर कोई अतिरिक्त सबूत न होने पर बाद में समन नहीं किया जा सकता।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा,
“CrPC की धारा 319 कोर्ट को कॉलम नंबर 12 में रखे गए आरोपी को बाद में समन करने का अधिकार देता है लेकिन सवाल यह है कि यह पावर किस स्टेज पर और किन परिस्थितियों में इस्तेमाल की जा सकती है। कोर्ट CrPC की धारा 319 के तहत अपनी पावर का इस्तेमाल करते हुए कॉलम नंबर 12 में रखे गए आरोपी को तभी समन कर सकता है, जब बाद में कोई मटेरियल सामने आए चाहे वह बाद की इन्वेस्टिगेशन से हो या ट्रायल के दौरान रिकॉर्ड किए गए सबूतों से कुछ सामने आए।”
हरदीप सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब (2014) मामले का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की एक कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने कहा कि CrPC की धारा 319 के तहत पावर का इस्तेमाल केवल कोर्ट में रिकॉर्ड किए गए सबूतों के आधार पर किया जा सकता है, न कि इन्वेस्टिगेशन स्टेज पर इकट्ठा किए गए मटेरियल के आधार पर, जिसे पहले ही कॉग्निजेंस लेने के स्टेज पर टेस्ट किया जा चुका है”।
इस मामले में याचिकाकर्ता पर दूसरों के साथ अमेरिकी नागरिक को 2 करोड़ का चूना लगाने के आरोप में धोखाधड़ी की FIR दर्ज की गई थी।
हालांकि इन्वेस्टिगेशन के बाद याचिकाकर्ता का नाम कॉलम 12 (संदिग्ध) में डाल दिया गया।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने कॉग्निजेंस लिया और चार्जशीट में नामजद दो आरोपियों को समन किया लेकिन याचिकाकर्ता को नहीं।
हालांकि, बाद में याचिकाकर्ता को CrPC की धारा 319 के तहत पावर का इस्तेमाल करते हुए समन किया गया।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह समन आदेश असल में पिछली कोर्ट द्वारा पारित समन आदेश की समीक्षा/वापसी के बराबर था, जिसने चार्जशीट पर कॉग्निजेंस लेते समय ठीक से विचार किया था और केवल दो आरोपियों को ही समन किया था।
यह तर्क दिया गया कि रिकॉर्ड पर कोई नए तथ्य सामने नहीं आए, जो बाद की तारीख में याचिकाकर्ता को समन करने को सही ठहराते हों।
हाईकोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा,
“CrPC की धारा 319 के तहत पावर विवेकाधीन और खास पावर है, जिसका इस्तेमाल बहुत कम किया जाना चाहिए। मजिस्ट्रेट सिर्फ इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता, क्योंकि उसे लगता है कि कोई और व्यक्ति भी अपराध करने का दोषी हो सकता है। यह पावर तभी इस्तेमाल की जा सकती है, जब कोर्ट के सामने मज़बूत और ठोस सबूत पेश किए जाएं न कि लापरवाही से।”
इस तरह कोर्ट ने याचिका मंज़ूर कर ली और बाद का समन ऑर्डर रद्द कर दिया।