धारा 29ए के तहत याचिका यदि अवार्ड दिए जाने से पहले दायर की गई तो सुनवाई योग्य, यदि अवार्ड दिए जाने के बाद दायर की गई तो सुनवाई योग्य नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट

Update: 2024-03-06 08:38 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट के जस्टिस प्रतीक जालान की एकल पीठ ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) की धारा 29ए के तहत याचिका तब सुनवाई योग्य होती है, जब यह चल रही याचिका के दौरान फैसला सुनाए जाने से पहले दायर की जाती है। लेकिन अगर फैसला सुनाए जाने के बाद दायर की जाती है तो यह गैर-सुनवाई योग्य हो जाती है।

पूरा मामला

मामला लोन समझौते से संबंधित है, जहां याचिकाकर्ता ने लेंडर के रूप में कार्य किया प्रतिवादी नंबर 1 ने मुख्य उधारकर्ता के रूप में कार्य किया और प्रतिवादी संख्या 2 से 5 ने गारंटर के रूप में कार्य किया प्रतिवादी नंबर 6 ने कथित तौर पर अन्य उपक्रम प्रदान किए। याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर 1 से 6 सहित सभी पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही में शामिल है। मध्यस्थता की कार्यवाही भारतीय मध्यस्थता परिषद (ICA) के तत्वावधान में आयोजित की जानी है। याचिकाकर्ता ने ICA को अनुरोध प्रस्तुत करके मध्यस्थता शुरू की।

ICA नियमों के अनुसार पार्टियों को मध्यस्थ की नियुक्ति से पहले दलीलें पूरी करनी होती हैं। याचिकाकर्ता ने अपना दावा विवरण प्रस्तुत किया और प्रतिवादी नंबर 1 से 5 ने अपने बयान के साथ प्रतिवाद किया। आगे कोई याचिका दायर नहीं की गई। ICA द्वारा मध्यस्थ नियुक्त किया गया। प्रतिवादी नंबर 6 को एकपक्षीय घोषित किया गया। बाद में मध्यस्थ ने नोट किया कि प्रतिवादी नंबर 1 से 5 का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अपना वकालतनामा वापस लेने की मांग की। उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी गई। इसके बाद प्रतिवादी नंबर 1 से 5 की ओर से कोई अन्य वकील उपस्थित नहीं हुआ।

मध्यस्थता कार्यवाही में अंतिम सुनवाई हुई यह मानते हुए कि मध्यस्थ का जनादेश दलीलें पूरी होने के एक साल बाद समाप्त हो जाएगा। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 29 ए के तहत आवेदन दायर किया। याचिका का नोटिस उत्तरदाताओं को जारी किया गया। बाद में याचिकाकर्ता द्वारा धारा 29ए याचिका दायर करने के लगभग एक महीने बाद मध्यस्थ ने अवार्ड प्रकाशित किया।

इसलिए हाइकोर्ट के समक्ष केंद्रीय प्रश्न यह था कि क्या निर्णय दिए जाने के बाद ट्रिब्यूनल का कार्यक्षेत्र बढ़ाया जा सकता है।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

हाइकोर्ट ने हरकीरत सिंह सोढ़ी बनाम ओरम फूड्स (पी) लिमिटेड [2023 लाइवलॉ (डेल) 538] के मामले का हवाला दिया, जिसमें उस मामले के समान स्थिति शामिल हैं, जहां धारा 29ए याचिका के लंबित रहने के दौरान अवार्ड प्रदान किया गया और अधिदेश को अवार्ड तिथि तक बढ़ा दिया गया। पावरग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम एसपीएमएल इंफ्रा लिमिटेड में एक और समन्वय पीठ ने इस सवाल पर विचार किया गया कि क्या कोई अवार्ड मान्य किया जा सकता है, यदि ट्रिब्यूनल का जनादेश समाप्त होने के बाद दिया गया हो और विस्तार के लिए कोई पूर्व आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया हो। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसी याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

मामले में हाइकोर्ट ने कहा कि याचिका निर्णय से पहले दायर की गई भले ही मध्यस्थ के जनादेश की समाप्ति के बाद। यह माना गया कि याचिका तब सुनवाई योग्य होती है, जब उसे चल रही याचिका के दौरान अवार्ड दिए जाने से पहले दायर किया जाता है। लेकिन यदि अवार्ड दिए जाने के बाद दायर किया जाता है और उसे रद्द करने की कार्यवाही शुरू हो जाती है तो वह गैर-सुनवाई योग्य हो जाती है।

हाइकोर्ट के अनुसार यह अंतर एक मूलभूत सिद्धांत पर उचित है। एक पक्ष मध्यस्थता कार्यवाही में अपनी स्थिति से परिचित होने के बाद और अवार्ड के लिए चुनौती का सामना करने के बाद चुनिंदा रूप से यह तय नहीं कर सकता कि जनादेश के विस्तार की मांग इस आधार पर की जाए या नहीं।

मामले में याचिका मध्यस्थ के शासनादेश की समाप्ति के बाद दायर की गई, जबकि हरकीरत सिंह सोढ़ी के मामले में यह तब दायर की गई, जब शासनादेश अभी भी वैध है। हालांकि, हाइकोर्ट ने एटीसी टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर (पी) लिमिटेड बनाम बीएसएनएल [2023 लाइवलॉ (डेल) 1099] में अपनी ही मिसाल का संदर्भ दिया है, जिसमें पुष्टि की गई कि धारा 29ए याचिका शासनादेश समाप्त होने के बाद भी दायर की जा सकती है।

परिणामस्वरूप याचिका स्वीकार कर ली गई।

केस टाइटल- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम बनाम बेस्ट फर्स्ट स्टेप एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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