दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने से किया इनकार, 70 वर्षीय पति की आर्थिक और भावनात्मक अक्षमता का दिया हवाला

Update: 2025-08-06 06:46 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला को उसके अलग हुए पति की आर्थिक अक्षमता का हवाला देते हुए हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा,

"प्रतिवादी पर अंतरिम भरण-पोषण देने का दायित्व नहीं डाला जाना चाहिए। खासकर जब उसकी अपनी आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक स्थिति स्पष्ट रूप से तनावपूर्ण हो।"

महिला लगभग तीन दशकों से अपने 70 वर्षीय पति से अलग रह रही थी।

उसने अपने पति से भरण-पोषण की मांग की और इस बीच धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर किया। इस प्रावधान का उद्देश्य मुकदमे के दौरान पति या पत्नी के बुनियादी भरण-पोषण को सुनिश्चित करना है।

फैमिली कोर्ट द्वारा इस प्रावधान का लाभ देने से इनकार करने के बाद उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

प्रतिवादी-पति ने दलील दी कि अपीलकर्ता-पत्नी एक उच्च योग्यता प्राप्त व्यक्ति हैं। जुलाई 2014 में सीनियर टीचर पोस्ट से रिटायर हुई थीं। उन्होंने आगे दलील दी कि अपीलकर्ता अपने दो वयस्क बेटों के साथ रह रही है। दोनों ही नौकरीपेशा हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं। इस प्रकार, वह उसे आर्थिक रूप से सहारा देने की स्थिति में हैं।

दूसरी ओर, हाईकोर्ट ने कहा कि वह वृद्ध हैं और किसी भी लाभकारी नौकरी के लिए अयोग्य हैं। इसके अलावा उन्हें अपनी पिछली नौकरी में सभी रिटायरमेंट लाभों से वंचित रखा गया था, जिससे उन्हें अपने बुनियादी जीवन-यापन के खर्चों को पूरा करने के लिए भारी रकम उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इन परिस्थितियों में हाईकोर्ट ने कहा,

"प्रतिवादी की वित्तीय कमज़ोरी उसकी वृद्धावस्था और रिटायरमेंट के बाद के अधिकारों के नुकसान के कारण, उस पर कोई और आर्थिक दायित्व थोपने के विरुद्ध है।"

इसने स्पष्ट किया कि धारा 24 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वैवाहिक कार्यवाही में जो पति या पत्नी वास्तव में अपना भरण-पोषण करने या कार्यवाही के खर्चों को वहन करने में असमर्थ है, उसे प्रक्रियात्मक रूप से नुकसान न हो अनावश्यक वित्तीय बोझ न डालने या दूसरे पति/पत्नी की जीवनशैली से मेल न खाने के लिए।

कहा गया,

“धारा 24 का आह्वान स्वतः अधिकार के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। इस प्रावधान के तहत न्यायालय को प्रदत्त विवेकाधिकार व्यापक है। इसका प्रयोग दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति स्वतंत्र आय और समग्र परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए।”

कोर्ट ने  पत्नी की अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल: वाई.वी. बनाम वी.वी.

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