COVID लॉकडाउन में मास्क न पहनने पर वकील के खिलाफ दर्ज FIR रद्द: हाईकोर्ट ने दिया यह निर्देश
दिल्ली हाईकोर्ट ने अप्रैल, 2020 के COVID-19 लॉकडाउन के दौरान अपने घर के बाहर बिना मास्क खड़े होने पर एक वकील के खिलाफ दर्ज FIR रद्द की।
जस्टिस संजीव नरूला ने वकील की ओर से दिए गए इस बयान को स्वीकार किया कि वह बिना किसी दोष-स्वीकारोक्ति के नागरिक दायित्व के रूप में दिल्ली पुलिस वेलफेयर फंड में 10,000 रुपए जमा करने को तैयार हैं। अदालत ने निर्देश दिया कि राशि चार सप्ताह के भीतर जमा की जाए और इसकी रसीद एक सप्ताह के भीतर जांच अधिकारी को सौंपी जाए।
वकील भूपेंद्र लाकड़ा ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 (सरकारी आदेश की अवज्ञा) और 269 (संक्रमण फैलाने की लापरवाही) के तहत दर्ज FIR रद्द करने की याचिका दायर की थी। पुलिस का आरोप था कि वकील ने CrPC की धारा 144 के तहत जारी उस आदेश का उल्लंघन किया, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर फेस कवर पहनना अनिवार्य था।
वकील का कहना था कि वह केवल अपने घर के गेट तक ही गए और न तो वह किसी भीड़ में थे और न ही किसी सार्वजनिक सभा में। वह एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट हैं और पहले कभी किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया। ऐसी स्थिति में गेट पर कुछ क्षणों के लिए मास्क न पहनना धारा 144 के आदेश की जान-बूझकर अवहेलना नहीं माना जा सकता।
अदालत ने कहा कि उपलब्ध रिकॉर्ड से यह नहीं दिखता कि वकील को CrPC की धारा 144 के आदेश की वास्तविक और पूर्ण जानकारी थी। यदि मान भी लिया जाए कि जानकारी थी, तब भी वह अपने घर के ठीक बाहर खड़े थे, न कि किसी सार्वजनिक भीड़ में।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि शिकायत में यह स्पष्ट नहीं है कि वकील का यह व्यवहार कैसे IPC की धारा 188 के तहत आवश्यक मिसचीफ पैदा करता है। यह प्रावधान हर छोटी तकनीकी चूक पर दंड देने के लिए नहीं, बल्कि ऐसे आचरण पर लागू होता है, जो सार्वजनिक व्यवस्था या सुरक्षा को वास्तविक रूप से बाधित करता है। IPC की धारा 269 का आरोप पहले ही साक्ष्य के अभाव में हटा दिया गया।
जस्टिस नरूला ने कहा कि COVID-19 अभूतपूर्व स्वास्थ्य आपातकाल था और सरकार द्वारा जारी आदेश जनहित में थे लेकिन आपराधिक कानून एक कठोर उपकरण है। इसका उपयोग तभी होना चाहिए, जब आवश्यक तत्व स्पष्ट रूप से साबित हों।
अदालत ने माना कि इस मामले में आगे की आपराधिक कार्यवाही दमनकारी होगी और न तो जनस्वास्थ्य के उद्देश्य को आगे बढ़ाएगी और न ही न्याय के हित में होगी। इसलिए हाईकोर्ट ने अपनी अंतर्निहित अधिकारिता का प्रयोग करते हुए FIR रद्द की।