दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: तिहाड़ जेल के असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट पर लगा इंक्रीमेंट रोकने का जुर्माना बहाल
दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ जेल के असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट पर कैदियों के साथ कथित दुर्व्यवहार और उनसे जबरन पैसे वसूलने के मामले में लगाया गया दो इंक्रीमेंट रोकने का जुर्माना बहाल कर दिया है। यह जुर्माना मूल रूप से साल 2005 में लगाया गया था।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने तिहाड़ जेल के महानिदेशक (Director General) द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें अनुशासनात्मक और अपीलीय अधिकारियों के आदेशों को खारिज कर दिया गया था। CAT ने अपने आदेश में असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट को सभी परिणामी लाभ देने का निर्देश भी दिया था।
मामला
मामला 2003 का है, जब संबंधित अधिकारी जेल नंबर 1 में तैनात था। तीन विचाराधीन कैदियों (Undertrial Prisoners - UTP) ने अपने वकीलों के माध्यम से संबंधित ट्रायल कोर्ट में शिकायतें दर्ज कराई, जिनमें उनके साथ दुर्व्यवहार और पैसे वसूलने के आरोप लगाए गए। कोर्ट ने ये शिकायतें जेल अथॉरिटी को भेज दी थीं।
जांच और आरोप: 2004 में अधिकारी के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया। जांच अधिकारी ने 2005 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि आरोप सिद्ध होते हैं। यह निष्कर्ष एक विचाराधीन कैदी की गवाही, एक डिप्टी सुपरिंटेंडेंट की गवाही और रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेजों पर आधारित था।
मूल दंड: नवंबर 2005 में अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने जांच अधिकारी के निष्कर्षों से सहमति जताते हुए अधिकारी के वेतनमान में दो इंक्रीमेंट को स्थायी रूप से और संचयी प्रभाव से रोकने का दंड लगाया, जिसका असर उनकी पेंशन पर भी पड़ना था।
अधिकारी की अपील को अपीलीय प्राधिकरण ने खारिज कर दिया था। हालांकि CAT ने उन्हें राहत दे दी थी। इसी फैसले को तिहाड़ जेल महानिदेशक ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि वह विचाराधीन कैदी की गवाही को नजरअंदाज नहीं कर सकता। कैदी ने अपनी गवाही में स्पष्ट रूप से कहा कि उसने केवल असिस्टेंट सुपरिंटेंडेंट का नाम लिया था जिसने उसके साथ मारपीट की और पैसों की मांग की थी।
अदालत ने टिप्पणी की कि विचाराधीन कैदी ने विशेष रूप से इसी अधिकारी का नाम लिया, किसी और का नहीं, जो कि एक सीधा और स्पष्ट आरोप था जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
बेंच ने आगे कहा कि विभागीय कार्यवाही में लागू संभावनाओं की प्रबलता के मानक पर आरोप को स्थापित करने के लिए विचाराधीन कैदी की गवाही पर्याप्त थी, भले ही दूसरे जेल अधिकारी की गवाही को अनदेखा कर दिया जाए।
कोर्ट ने कहा,
"हमारा मत है कि माननीय ट्रिब्यूनल का विवादित आदेश साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन करने और प्रासंगिक सामग्री को नजरअंदाज करने में क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटि से ग्रस्त है।"
इन कारणों के चलते हाईकोर्ट ने CAT के 21.07.2008 का आदेश रद्द कर दिया और अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा लगाए गए जुर्माने (07.11.2005 का आदेश), जिसे अपीलीय प्राधिकरण ने बरकरार रखा था उसको पुनः बहाल कर दिया।