दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक साथी को मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने की याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2025-07-17 08:24 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को नोटिस जारी किया। यह याचिका महिला अर्शिया टक्कर द्वारा दायर की गई, जिसमें मांग की गई कि मरीज के समलैंगिक साथी को मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी जाए ताकि वह आपातकालीन मेडिकल स्थितियों में मरीज की ओर से निर्णय ले सके और सहमति दे सके।

जस्टिस सचिन दत्ता की एकल पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, कानून एवं न्याय मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से जवाब मांगा।

याचिका में वैकल्पिक रूप से यह भी अनुरोध किया गया कि यदि कोई मरीज पहले से अपने सममलैंगिक साथी को मेडिकल पॉवर ऑफ अटॉर्नी के ज़रिए अधिकृत कर चुका है तो उसे मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वर्तमान नियमों में केवल पति-पत्नी, माता-पिता, या अभिभावक से ही इलाज की सहमति प्राप्त करने की बात कही गई। 2002 के मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के प्रोफेशनल एथिक्स रेगुलेशन के तहत समलैंगिक रिश्तों को मान्यता नहीं दी गई, जिससे ऐसे साथी किसी गंभीर स्थिति में निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं। अर्शिया ने कहा कि यह स्थिति उन्हें उनकी साथी के लिए आवश्यक मेडिकल निर्णय लेने के अधिकार से वंचित करती है, जबकि यही अधिकार एक विषमलैंगिक रिश्ते में स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है।

याचिका में यह भी कहा गया कि इस प्रकार का भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, जो समानता और लिंग के आधार पर भेदभाव न करने की गारंटी देता है। साथ ही यह अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है, जो गरिमा के साथ जीवन जीने और निजी निर्णय लेने के अधिकार को संरक्षण देता है।

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के नवतेज जोहर बनाम भारत संघ फैसले के तहत लैंगिक रुझान को भी जेंडर की श्रेणी में रखा गया और इसी आधार पर समान-लैंगिक रिश्तों को समान संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए।

अब अदालत इस याचिका पर अगली सुनवाई में यह देखेगी कि क्या मेडिकल प्रतिनिधि की परिभाषा को व्यापक रूप देकर समान-लैंगिक साथियों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। यह मामला भारत में समलैंगिक अधिकारों और स्वास्थ्य देखभाल तक उनकी पहुंच के अधिकार को लेकर अहम मोड़ साबित हो सकता है।

केस टाइटल: अर्शिया टक्कर बनाम भारत संघ व अन्य

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