हत्या के मामले में प्रत्यक्षदर्शी व चिकित्सकीय साक्ष्य पर्याप्त, भले ही उद्देश्य सिद्ध न हो : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-11-13 10:11 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा कि यदि हत्या के मामले में प्रत्यक्षदर्शी के बयान को मेडिकल साक्ष्य से पुष्टि मिलती है तो अपराध का उद्देश्य पूरी तरह सिद्ध न होने पर भी आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।

जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि यदि अभियोजन के पास पर्याप्त प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध हैं तो केवल इस आधार पर आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता कि अपराध का कारण स्पष्ट रूप से सिद्ध नहीं हुआ।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हत्या के मामले में अपराध में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी अनिवार्य शर्त नहीं है।

पीठ ने कहा,

“यदि प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य और चिकित्सकीय साक्ष्य के आधार पर आरोपी की संलिप्तता साबित होती है तो अभियोजन द्वारा अपराध के उद्देश्य को सिद्ध न कर पाना उसके मामले को कमजोर नहीं करता।”

अदालत ने इस आधार पर छह अभियुक्तों आरिफ, अबिद, जावेद, गुफ़रान, तरीफ़ और इसराइल पहलवान की सजा को बरकरार रखा और उनकी अपीलों को खारिज कर दिया। ये सभी एक व्यक्ति इब्राहिम की हत्या के दोषी ठहराए गए।

अभियोजन के अनुसार सभी अभियुक्त आधी रात मृतक की दुकान पर पहुँचे और उसके साथ मारपीट शुरू कर दी। प्रत्यक्षदर्शी (गवाह-1) के बयान के अनुसार मृतक दुकान के अंदर भागा तो आरोपी आरिफ ने उस पर 5-6 गोलियां चलाईं, अबिद और जावेद ने चाकू से हमला किया जबकि गुफ़रान और तरीफ़ ने क्रिकेट स्टंप से प्रहार किया और इसराइल पहलवान ने लाठी से हमला किया।

बचाव पक्ष ने दलील दी कि प्रत्यक्षदर्शी की मौजूदगी संदिग्ध थी। परंतु अदालत ने पाया कि गवाह ने रात 12:22 बजे पुलिस को 100 नंबर पर कॉल किया था वह घटनास्थल पर मौजूद था उसने मृतक को PCR वैन से अस्पताल भिजवाया और उसके कपड़ों पर मृतक का रक्त पाया गया, जिसकी पुष्टि फॉरेंसिक रिपोर्ट से हुई।

अभियुक्तों ने यह भी तर्क दिया कि घटनास्थल को लेकर गवाहों के बयानों में विरोधाभास है। अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि घटना के तुरंत बाद पुलिस मौके पर पहुंच गई थी, ऐसे में अपराध स्थल में छेड़छाड़ या रक्त के निशानों को बनावटी ढंग से रखना संभव नहीं था।

डॉक पहचान को लेकर उठाई गई आपत्ति पर अदालत ने कहा कि चूंकि गवाह सभी अभियुक्तों को पहले से जानता था, इसलिए उसकी पहचान को लेकर कोई संदेह नहीं रह जाता।

अदालत ने पाया कि अभियोजन के पास अभियुक्तों के रक्त-सने कपड़ों और डीएनए रिपोर्ट जैसे ठोस साक्ष्य थे, जबकि बचाव पक्ष केवल साधारण इनकार की रणनीति पर चला।

अंततः अदालत ने दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी। हालांकि अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन पर लगाए गए जुर्माने की राशि में कमी कर दी।

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