दिल्ली में जारी OBC सर्टिफिकेट को 'माइग्रेंट' नहीं माना जा सकता, भले ही वह पिता के अन्य राज्य के सर्टिफिकेट पर आधारित हो: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा एक उम्मीदवार को जारी OBC सर्टिफिकेट को केवल इसलिए 'माइग्रेंट' मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह उसके पिता के उत्तर प्रदेश में जारी जाति सर्टिफिकेट के आधार पर बना था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब सर्टिफिकेट दिल्ली के अधिकारियों द्वारा जारी किया गया तो उसे माइग्रेंट प्रमाणपत्र नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस अजय दिग्पौल की खंडपीठ ने कहा,
“प्रमाणपत्र को जैसा है, वैसा ही पढ़ा जाना चाहिए। इसमें यह कहीं नहीं लिखा कि यह माइग्रेंट के तौर पर जारी किया गया। इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि 'निशा, निवासी दिल्ली, जाति – जाट, जो कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह तथ्य कि यह उसके पिता के उत्तर प्रदेश के प्रमाणपत्र के आधार पर जारी हुआ इस बात को नहीं बदलता।”
दिल्ली सरकार ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उम्मीदवार निशा को दिल्ली में OBC आरक्षण का लाभ देने की अनुमति दी गई।
दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (DSSSB) ने तर्क दिया था कि क्योंकि OBC प्रमाणपत्र उत्तर प्रदेश के प्रमाणपत्र के आधार पर जारी हुआ था, इसलिए उसे दिल्ली में सामान्य वर्ग में माना गया।
हाईकोर्ट ने DSSSB की इस दलील को खारिज करते हुए कहा,
“हम प्रमाणपत्र में वह बातें नहीं पढ़ सकते, जो उसमें दर्ज ही नहीं हैं। यदि DSSSB को लगता था कि उम्मीदवार आरक्षण की पात्र नहीं है तो उसे कारण बताओ नोटिस देकर उसका पक्ष सुनना चाहिए था।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रमाणपत्र दिल्ली के राजस्व अधिकारियों द्वारा जारी किया गया और भर्ती विज्ञापन की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है।
कोर्ट ने माना कि निशा OBC आरक्षण का लाभ पाने की पूर्णतः पात्र है और दिल्ली सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: GNCTD बनाम निशा.