Banking Regulation Act | अनियमितताओं के 90वें दिन अकाउंट को NPA घोषित करना RBI के नियमों के मुताबिक: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी बैंक द्वारा अनियमितताओं के 90वें दिन किसी अकाउंट को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित करने की कार्रवाई को 'समय से पहले' नहीं कहा जा सकता।
RBI के इनकम रिकग्निशन एसेट क्लासिफिकेशन और प्रोविजनिंग पर प्रूडेंशियल नियम जिन्हें Banking Regulation Act, 1949 की धारा 21 और 35A के तहत कानूनी मान्यता प्राप्त है, यह बताते हैं कि एक ओवरड्राफ्ट (OD) या क्रेडिट कैश (CC) अकाउंट तब NPA बन जाता है, जब बकाया बैलेंस लगातार 90 दिनों से ज़्यादा समय तक स्वीकृत सीमा या ड्रॉइंग पावर से ज़्यादा रहता है।
याचिकाकर्ता केनरा बैंक ने तर्क दिया कि उसने लगातार अनियमितता की 90-दिन की अवधि की सही गणना की और प्रतिवादियों के खातों को 31.03.2013 को अनिवार्य अवधि समाप्त होने के बाद ही वर्गीकृत किया।
दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि डेट रिकवरी अपीलेट ट्रिब्यूनल ने सही ढंग से विचार किया और माना कि बैंक ने 90 दिनों से ज़्यादा समय बीतने से पहले ही उनके खाते को वर्गीकृत कर दिया था।
हाईकोर्ट ने पाया कि 31.12.2012 तक प्रतिवादियों के OD और CC खाते अनियमित हो गए, जिसमें बकाया बैलेंस स्वीकृत सीमाओं से ज़्यादा था। कोर्ट ने कहा कि यह अतिरिक्त राशि न तो मामूली थी और न ही अस्थायी जिसके कारण बैंक ने 31.03.2013 को खाते को NPA घोषित कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि अगर इस तारीख को 90वां दिन भी मान लिया जाए तो भी कानूनी अवधि पूरी होने की तारीख पर वर्गीकरण को समय से पहले नहीं कहा जा सकता। खासकर तब जब अनियमितता निर्विवाद हो और घोषणा अनिवार्य समय सीमा की समाप्ति के साथ ही की गई हो।
आगे कहा गया,
“प्रूडेंशियल नियमों के अनुसार खाते को '90 दिनों से ज़्यादा' समय तक अनियमित रहने के बाद वर्गीकृत किया जाना चाहिए। जब 90-दिन की अवधि 31.03.2013 को समाप्त होती है तो याचिकाकर्ता बैंक द्वारा उसी तारीख को या तुरंत बाद वर्गीकरण की कार्रवाई नियामक आवश्यकता को समान रूप से पूरा करेगी।”
कोर्ट ने आगे कहा कि RBI फ्रेमवर्क के तहत एक बैंक लगातार अनियमितता की कानूनी अवधि समाप्त होने के बाद वर्गीकरण में देरी या उसे टाल नहीं सकता।
90 दिनों से ज़्यादा' इस वाक्यांश का मतलब लगातार यह समझा गया कि क्लासिफिकेशन से पहले पूरे 90 दिन पूरे होने चाहिए। गिनती उस तारीख से शुरू होती है जो उस दिन के ठीक बाद आती है, जिस दिन अकाउंट पहली बार अनियमित होता है। अगर अनियमितता पूरे 90 दिनों तक बिना रुके जारी रहती है तो रेगुलेटरी फ्रेमवर्क की नज़र में अकाउंट खराब माना जाता है। बैंक को ऐसी अवधि पूरी होने के अगले दिन उसे NPA के रूप में क्लासिफाई करना होगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि प्रतिवादियों ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया जिससे यह पता चले कि अकाउंट रेगुलर किए गए ब्याज का भुगतान किया गया या संबंधित अवधि के दौरान किसी भी समय अकाउंट को स्वीकृत सीमाओं के भीतर लाया गया।
कोर्ट ने कहा,
“एक बार जब याचिकाकर्ता बैंक लगातार अनियमितता का अस्तित्व साबित कर देता है तो गलत क्लासिफिकेशन साबित करने का बोझ कर्जदार पर होता है और वह बोझ पूरा नहीं किया गया है।”