15 जुलाई से पहले दृष्टिबाधित और श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिए सिनेमा को और अधिक सुलभ बनाने के लिए दिशा-निर्देश अधिसूचित करें: दिल्ली हाइकोर्ट ने MIB से कहा

Update: 2024-03-28 08:12 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) को 15 जुलाई तक या उससे पहले दृष्टिबाधित और श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिए सिनेमा को और अधिक सुलभ बनाने के लिए दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने और अधिसूचित करने का निर्देश दिया।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने स्पष्ट किया कि दिशा-निर्देशों में फीचर फिल्मों में सुगमता सुविधाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाया जाएगा और सभी हितधारकों द्वारा शीघ्रता से अनुपालन के लिए उचित अवधि प्रदान की जाएगी।

MIB द्वारा 14 मार्च को प्रस्तुत हलफनामे के अनुसार, मंत्रालय "श्रवण और दृश्य बाधित व्यक्तियों के लिए सिनेमा थिएटरों में फीचर फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन में सुगमता मानकों के मसौदा दिशा-निर्देश शीर्षक से दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है।

दिशा-निर्देशों में श्रवण एवं दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिए फीचर फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए सुगम्यता मानक निर्धारित किए गए तथा ये व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सिनेमा हॉल या मूवी थियेटर में सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फीचर फिल्मों पर लागू होंगे।

जस्टिस सिंह ने निर्देश दिया कि इस बीच दिशा-निर्देशों को अधिसूचित किए जाने के बाद यदि फिल्मों में सुगम्यता विशेषताओं को शामिल करने के लिए MIB को कोई अभ्यावेदन प्राप्त होता है तो मंत्रालय से सचिव को ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के लिए नामित अधिकारी के रूप में नामित किया जाएगा।

अदालत ने कहा,

“यदि अभ्यावेदन प्राप्त होते हैं तो उनका जवाब तीन कार्य दिवसों के भीतर दिया जाएगा तथा यह प्रयास किया जाएगा कि दिशा-निर्देशों को अधिसूचित किए जाने के दौरान भी ऐसे फीचर फीचर फिल्मों में शामिल किए जाएं, जिनमें OTT प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं। उक्त अवर सचिव का संपर्क विवरण MIB द्वारा 10 अप्रैल 2024 तक वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाएगा।”

अदालत ने शाहरुख खान अभिनीत जवान में कैप्शन को दृष्टि एवं श्रवण बाधित व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने के लिए पिछले साल दायर की गई याचिका का निपटारा किया। इसमें दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों के अनुरूप फिल्म में ऑडियो विवरण, क्लोज कैप्शनिंग और सब-टाइटल्स शामिल करने की मांग की गई थी।

याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस सिंह ने कहा कि सुलभता कानूनी अधिकार के रूप में लागू करने योग्य है। यहां तक ​​कि निजी पक्षों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि श्रवण और दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए अधिक सुलभता सक्षम करने के लिए उचित समायोजन उपाय किए जाएं।

अदालत ने कहा,

“श्रवण या दृष्टिबाधित व्यक्ति को फिल्म थियेटर तक आसानी से भौतिक पहुंच मिल सकती है, लेकिन अगर निर्माता, थिएटर प्रबंधक, ओटीटी प्लेटफॉर्म आदि सहित अन्य हितधारकों द्वारा इसे मनोरंजक बनाने के उपाय नहीं किए जाते हैं तो वह फिल्म का आनंद बिल्कुल भी नहीं ले पाएगा। राज्य का यह सकारात्मक दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इस दिशा में सभी संभव कदम उठाए जाएं।”

इसमें कहा गया कि सुलभता सुविधाओं का प्रावधान न करना दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के तहत अपराध माना जाएगा।

यह याचिका विभिन्न दिव्यांग व्यक्तियों द्वारा दायर की गई, जिसमें लॉ स्टूडेंट, वकील और नेशनल एसोसिएशन फॉर द डेफ के कार्यकारी निदेशक शामिल थे। इसमें दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित विभिन्न अधिकारों और सुलभता आवश्यकताओं को लागू करने की मांग की गई।

याचिकाकर्ताओं का मामला यह था कि हालांकि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए विभिन्न अधिकारों को मान्यता दी गई और 2016 के अधिनियम के तहत भारत में रिलीज की गई फिल्में दिव्यांगों की जरूरतों को पूरा नहीं करती हैं।

पिछले साल अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह फिल्मों को दिव्यांगों के अनुकूल बनाने और दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए हितधारकों के साथ परामर्श करे।

केस टाइटल- अक्षत बलदवा और अन्य बनाम यशराज फिल्म्स और अन्य।

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