दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 साल बाद वकील के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्यवाही रद्द की: रिहायशी बेसमेंट में ऑफ़िस चलाने का था मामला

Update: 2025-10-09 11:56 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 साल लंबी कानूनी लड़ाई का अंत करते हुए एक वकील के ख़िलाफ़ शुरू की गई आपराधिक शिकायत और उसके बाद की सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया। यह मामला वकील पर एक रिहायशी इमारत के बेसमेंट से अपना पेशेवर ऑफ़िस चलाने के आरोप से संबंधित था।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने अपने फैसले में मास्टर डेवलपमेंट प्लान 2001 (MDP 2001) के खंड 10 का हवाला दिया, जो कुछ शर्तों के साथ रिहायशी परिसर के गैर-रिहायशी उपयोग की अनुमति देता है।

इस प्लान के तहत कोई भी निवासी अपनी पेशेवर दक्षता के आधार पर सेवाएँ प्रदान करने के लिए अपने निवास के क्षेत्र का 25% या 50 वर्ग मीटर जो भी कम हो उसका उपयोग ऑफ़िस के लिए कर सकता है।

कोर्ट ने इस मामले के तथ्यों की जाँच करते हुए कहा कि बेसमेंट का निर्माण तो मास्टर प्लान के अनुसार ही हुआ था। विवाद केवल उसके उपयोग को लेकर था।

न्यायालय ने स्पष्ट किया,

"निरीक्षण रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो यह दर्शाता हो कि ऑफ़िस अनुमेय सीमा से अधिक क्षेत्र में चलाया जा रहा था।"

वकील बी. के. सूद के ख़िलाफ़ नई दिल्ली नगर परिषद अधिनियम 1994 (NDMC Act 1994) की धारा 252 और 369(1) के तहत शिकायत दर्ज की गई थी। उन पर चेयरपर्सन की अनुमति के बिना "वाणिज्यिक गतिविधि" (commercial activity) करके परिसर का दुरुपयोग करने का आरोप था। मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत का संज्ञान लिए जाने के बाद सूद ने 2005 में हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था।

हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के तर्क को खारिज़ कर दिया और अपने निष्कर्षों में कहा कि एक वकील द्वारा ऑफ़िस चलाना वाणिज्यिक गतिविधि नहीं है। न्यायालय ने कई पूर्व फैसलों का उल्लेख करते हुए यह स्थापित किया कि इस मामले पर NDMC Act की धारा 252 लागू नहीं होती।

इसके अतिरिक्त कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह दिखाने में प्रथम दृष्टया विफल रहा कि बेसमेंट के उपयोग में दिल्ली बिल्डिंग उप-नियम, 1983 या MDP 2001 के खंड 14.12 का कोई उल्लंघन हुआ है, जो पेशेवरों के लिए बेसमेंट के उपयोग की अनुमति देते हैं।

इन आधारों पर न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा परिसर का कोई दुरुपयोग नहीं किया गया था। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने आपराधिक शिकायत और सभी संबंधित कानूनी कार्यवाही को रद्द करने का आदेश दिया, जिससे वकील को दो दशक पुराने मामले से आखिरकार राहत मिली।

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