जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस डॉ. सुधीर कुमार जैन की दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने उषा देवी के पक्ष में फैसला सुनाया जिसमें भारत संघ को केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 41 के तहत उन्हें अनुकंपा भत्ता देने का निर्देश दिया गया। इस फैसले ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) द्वारा उनकी याचिका खारिज की थी, जिसने पहले उनके पति को सरकारी सेवा से बर्खास्त किए जाने के बाद उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
उषा देवी के दिवंगत पति 1976 से रक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ कार्यालय में सफाई कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे। उनकी सेवाओं को 1980 में नियमित किया गया। उषा देवी के अनुसार, उनके पति लंबे समय से मनोवैज्ञानिक समस्याओं से पीड़ित थे। इस कारण वे अक्सर परिवार को बताए बिना कई दिनों के लिए घर से बाहर चले जाते थे। 1997 में वे काम के लिए घर से बाहर चले गए और कभी वापस नहीं लौटे। उषा देवी को बाद में 1999 में पता चला कि उनके पति की पिछले साल पुणे में मृत्यु हो गई थी।
नतीजतन उन्होंने CCS (पेंशन) नियमों के नियम 41 के तहत अनुकंपा भत्ते के लिए अनुरोध करते हुए उनके कार्यालय में उनका मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया।
बाद में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दायर करने के बाद उन्हें पता चला कि उनके पति को आदतन अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। यह उनकी मृत्यु से पहले की गई एक पूर्ण अनुशासनात्मक जांच के बाद था। हालांकि, 2016 में उनकी बर्खास्तगी का हवाला देते हुए अनुकंपा भत्ते के लिए उनके अनुरोध को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया गया।
2019 में एक और अभ्यावेदन दाखिल करने के बाद (जिसे भी खारिज कर दिया गया) उन्होंने CAT का दरवाजा खटखटाया, जिसने मई 2022 में इस तरह की अस्वीकृति बरकरार रखी। असंतुष्ट होकर उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान रिट याचिका दायर की।
मामले में दिए गए तर्क
उषा देवी का प्रतिनिधित्व करने वाली श्रीपर्णा चटर्जी ने तर्क दिया कि सेवा से बर्खास्तगी अपने आप में अनुकंपा भत्ते के अनुदान को नहीं रोकनी चाहिए। उन्होंने महिंदर दत्त शर्मा बनाम भारत संघ (2014) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मिसाल पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि इस तरह के भत्ते से इनकार करने से पहले कदाचार की प्रकृति पर विचार किया जाना चाहिए। चूंकि पप्पू की बर्खास्तगी किसी बेईमानी या नैतिक रूप से भ्रष्ट कृत्य के कारण नहीं बल्कि अनुपस्थिति के कारण हुई थी, इसलिए उषा देवी की वित्तीय कठिनाई सीसीएस नियमों के नियम 41 के तहत सुनवाई योग्य है।
भारत संघ के सीनियर पैनल वकील मनीष कुमार ने प्रतिवाद किया कि पप्पू की बर्खास्तगी के कारण उनकी पेंशन संबंधी पात्रताएं समाप्त हो गईं। इस प्रकार, उनकी विधवा किसी भी अनुकंपा भत्ते का दावा नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि पप्पू की बार-बार अनधिकृत रूप से काम से अनुपस्थिति को देखते हुए उनके दावे को अस्वीकार करना उचित था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था।
निर्णय
अदालत के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या बर्खास्त कर्मचारी की विधवा उषा देवी सीसीएस (पेंशन) नियम 41 के तहत अनुकंपा भत्ते के लिए योग्य थी। न्यायालय ने अपने विश्लेषण में महिंदर दत्त शर्मा बनाम भारत संघ (2014) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक रूप से हवाला दिया। इसमें कहा गया कि जब तक किसी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी नैतिक पतन, बेईमानी या अन्य गंभीर कदाचार के कारण न हो, तब तक वे और उनके आश्रित सेवा से बर्खास्त होने के बाद भी अनुकंपा भत्ता प्राप्त करने के पात्र रहते हैं।
जजों ने उल्लेख किया कि पप्पू की बर्खास्तगी केवल उसकी अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण हुई, जो बर्खास्तगी के लिए वैध आधार है, लेकिन उसकी विधवा के अनुकंपा भत्ते के दावे को अस्वीकार करने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अनुपस्थिति, बर्खास्तगी को उचित ठहराते हुए अनुकंपा भत्ते के अनुदान को नहीं रोकती। खासकर जब कर्मचारी का परिवार गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा हो।
न्यायालय ने कैट के तर्क की आलोचना करते हुए कहा कि उसने महिंदर दत्त शर्मा सिद्धांतों को लागू नहीं किया। इसके बजाय पप्पू की अनुपस्थिति से अनुचित रूप से प्रभावित हुआ। CAT ने यह स्वीकार करने की उपेक्षा की कि जब तक कदाचार में बेईमानी, नैतिक पतन या अन्य समान अपराध शामिल न हों, तब तक बर्खास्तगी की ओर ले जाने वाले कदाचार की गंभीरता अप्रासंगिक है।
इसके अलावा न्यायालय ने उषा देवी की खराब वित्तीय स्थिति को भी ध्यान में रखा। उसने गरीबी रेखा से नीचे (BPL) का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था, जो दर्शाता है कि वह और उसका परिवार अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे। इसके अतिरिक्त उसकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने उसे काम करने से रोक दिया।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इन परिस्थितियों ने उसके मामले को नियम 41 के तहत अनुकंपापूर्ण विचार के योग्य बना दिया। इस प्रकार, न्यायालय ने CAT का आदेश रद्द कर दिया और भारत संघ को चार सप्ताह के भीतर उषा देवी को अनुकंपा भत्ता देने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि आगे की देरी अनुचित होगी, क्योंकि उसके प्रारंभिक आवेदन के बाद से लगभग नौ वर्ष बीत चुके थे। याचिका को जुर्माना के लिए किसी भी आदेश के बिना अनुमति दी गई।