कलंक लगाकर बिना सुनवाई बर्खास्तगी बर्दाश्त नहीं: सिविल डिफेंस एक्ट की धारा पर दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने सिविल डिफेंस एक्ट, 1968 की धारा 6(2) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखते हुए अत्यंत महत्वपूर्ण कानूनी व्यवस्था दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रशासन इस धारा का उपयोग किसी स्वयंसेवक पर 'कलंक' लगाकर उसे बिना सुनवाई के सेवा से बाहर करने के लिए एक 'ढाल' के रूप में नहीं कर सकता।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने उन सिविल डिफेंस स्वयंसेवकों की बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है, जिन्हें COVID-19 महामारी के दौरान ड्यूटी पर कथित रूप से रिपोर्ट न करने के कारण अवांछनीय घोषित कर बिना किसी नोटिस के निकाल दिया गया था।
अदालत ने अपने फैसले में सामान्य बर्खास्तगी और दंडात्मक बर्खास्तगी के बीच एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींची है। खंडपीठ ने कहा कि धारा 6(2) के तहत स्वयंसेवकों की संक्षिप्त बर्खास्तगी की शक्ति प्रशासनिक दृष्टि से वैध है, क्योंकि यह सेवा स्वैच्छिक और मानद प्रकृति की होती है। हालांकि यदि बर्खास्तगी का आधार कोई कदाचार या आरोप है, जो व्यक्ति की छवि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के तहत संबंधित पक्ष को अपनी बात रखने का उचित और सार्थक अवसर दिया जाना अनिवार्य है।
मामले की सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि याचिकाकर्ताओं को केवल एक प्रशासनिक आदेश के जरिए हटा दिया गया लेकिन सरकार ने स्वीकार किया कि इस कार्रवाई के पीछे का असली कारण महामारी के दौरान ड्यूटी से अनुपस्थित रहना था। इस पर कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही बर्खास्तगी का आदेश देखने में सामान्य लग रहा हो, लेकिन इसके पीछे की मंशा दंडात्मक थी। अदालत ने पाया कि प्रशासन ने धारा 6(1) के तहत अनिवार्य सुनवाई की कठोर प्रक्रिया से बचने के लिए जानबूझकर धारा 6(2) का सहारा लिया, जो कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण है।
हाईकोर्ट ने रेखांकित किया कि जब किसी कर्मचारी या स्वयंसेवक पर कोई आरोप या नकारात्मक टिप्पणी (जैसे अवांछनीय होना) चस्पा की जाती है, तो उसे 'स्टिग्मैटिक' बर्खास्तगी माना जाता है। ऐसी स्थिति में आरोपों के आधार प्रस्तुत करना और प्रभावित पक्ष को सफाई का मौका देना आवश्यक है। अदालत ने कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत कोई औपचारिकता नहीं हैं बल्कि वे एक अनिवार्य सुरक्षा कवच हैं, विशेषकर उन लोगों के लिए जो समाज की सेवा में अपना योगदान देते हैं।
अंततः दिल्ली हाईकोर्ट ने इस कार्रवाई को नैसर्गिक न्याय का खुला उल्लंघन करार देते हुए याचिकाकर्ताओं की बर्खास्तगी को अवैध घोषित कर दिया। अदालत के इस फैसले ने यह सुनिश्चित कर दिया कि भविष्य में सिविल डिफेंस वालंटियर्स को बिना किसी ठोस प्रक्रिया या सुनवाई के अनुशासनहीन बताकर नौकरी से बाहर नहीं किया जा सकेगा।