सरकार को दिव्यांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त की सिफारिशें न मानने पर कारण बताना होगा: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-11-12 07:07 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner for Persons with Disabilities CCPwD) की सिफारिशों को सामान्य रूप से सरकार और संबंधित प्राधिकरणों को मानना चाहिए। हालांकि यदि कोई वैध कारण हो तो संबंधित प्राधिकारी इन सिफारिशों को न मानने का निर्णय ले सकता है परंतु ऐसे में उसे अपनी अस्वीकृति का कारण स्पष्ट रूप से बताना अनिवार्य होगा।

जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने कहा,

“यदि कोई प्राधिकारी मुख्य आयुक्त की सिफारिश नहीं मानता तो उसे यह कारण मुख्य आयुक्त और पीड़ित व्यक्ति दोनों को सूचित करना होगा ताकि पीड़ित व्यक्ति अपने कानूनी उपाय का उपयोग कर सके, जैसा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने किया।”

यह टिप्पणी उस याचिका पर आई, जिसमें एक दृष्टिबाधित उम्मीदवार ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के एसोसिएट बैंकों में प्रोबेशनरी ऑफिसर पद से अपनी सेवा समाप्ति को चुनौती दी थी। उसे अनिवार्य पुष्टि परीक्षा में उत्तीर्ण न हो पाने के कारण पद से हटा दिया गया।

याचिकाकर्ता ने इस निर्णय के खिलाफ कई स्तरों पर अपील की, पर राहत न मिलने पर उसने दिव्यांग व्यक्तियों के मुख्य आयुक्त (CCPwD) के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। मुख्य आयुक्त ने SBI को याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति रद्द करने और छह माह का विशेष प्रशिक्षण देने के बाद दोबारा परीक्षा लेने की सिफारिश की थी। हालांकि, बैंक ने इस सिफारिश को लागू करने से इनकार कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

अदालत ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) की धारा 76 के तहत यदि CCPwD किसी प्राधिकरण को कोई सिफारिश भेजता है तो उस प्राधिकरण को तीन माह के भीतर उस पर कार्रवाई कर मुख्य आयुक्त को सूचित करना अनिवार्य है। साथ ही अधिनियम में यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि सिफारिश को स्वीकार नहीं किया जाता तो अस्वीकृति का कारण भी मुख्य आयुक्त और संबंधित व्यक्ति दोनों को तीन माह के भीतर बताया जाना चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि बैंक यह विचार करे कि क्या पुष्टि परीक्षा में दिव्यांग उम्मीदवारों को और अधिक रियायत दी जा सकती है ताकि RPwD Act की भावना व्यर्थ न हो जाए।

अदालत ने निर्देश दिया,

“यदि बैंक अतिरिक्त रियायत देने से इनकार करता है, तो इसके कारण भी याचिकाकर्ता को सूचित किए जाएं।”

याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि विकलांग उम्मीदवारों के लिए पुष्टि परीक्षा में आरक्षण या अलग मानक तय किए जाने चाहिए। इस तर्क को अदालत ने अस्वीकार करते हुए कहा कि RPwD Act में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

अदालत ने कहा,

“एक बार जब किसी विकलांग व्यक्ति को आरक्षित पद पर नियुक्ति मिल चुकी है तो उसे भी अन्य उम्मीदवारों की तरह पुष्टि परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। अधिनियम इस स्तर पर किसी अतिरिक्त आरक्षण या अलग मानक का प्रावधान नहीं करता।”

अंततः अदालत ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि सरकार और उसके संस्थान CCPwD की सिफारिशों को गंभीरता से लें और यदि किसी कारणवश उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता तो उस अस्वीकृति के पीछे के कारण पारदर्शी रूप से बताए जाएं।

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