लेनदेन की वास्तविकता और साख का पता लगाने के लिए AO द्वारा ठोस कदम उठाने में विफलता: दिल्ली हाइकोर्ट
जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव की खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 263 के स्पष्टीकरण 2 के खंड (ए) में इस आशय की काल्पनिक कल्पना प्रस्तुत की गई कि AO द्वारा पारित आदेश को गलत और राजस्व के हितों के लिए हानिकारक माना जाएगा, यदि आदेश जांच या सत्यापन किए बिना पारित किया जाता है, जो कि किया जाना चाहिए।
इसके बाद न तो मूल्यांकन आदेश में पूर्वोक्त पहलुओं के बारे में चर्चा का कोई पहलू है और न ही मूल्यांकन रिकॉर्ड विधिवत रूप से यह दर्शाता है कि AO ने जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों के आलोक में जांच की है, इसलिए अदालत ने पाया कि आयकर अधिनियम की धारा 263 के तहत पुनर्विचार शक्तियों को लागू करने का मामला है।
प्रतिवादी या करदाता रियल एस्टेट विकास के व्यवसाय में है और उसने आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल किया है। करदाता के मामले को जांच के लिए उठाया गया और धारा 143 (2) के तहत एक नोटिस जारी किया गया।
एक जांच की गई और आयकर अधिनियम (Income Tax Act) की धारा 143 (3) के तहत मूल्यांकन आदेश पारित किया गया, जिसके द्वारा कर निर्धारण अधिकारी ने आयकर अधिनियम की धारा 14 ए के तहत जोड़ करते हुए करदाता की आय निर्धारित की।
करदाता ने आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष अपील दायर की और CIT (a) ने करदाता की अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर ली। एओ द्वारा किए गए जोड़ को प्रतिबंधित कर दिया।
धारा 263 के तहत निहित शक्तियों के आधार पर PCIT ने मूल्यांकन आदेश का अवलोकन किया और करदाता को नोटिस जारी किया। धारा 263 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए PCIT ने कर निर्धारण आदेश को गलत और राजस्व के हितों के प्रतिकूल मानते हुए रद्द कर दिया और एओ को मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।
PCIT आदेश का विरोध करते हुए करदाता ने ITAT के समक्ष अपील की और 14 फरवरी 2022 के अपने आदेश के माध्यम से ITAT ने करदाता की दलीलों को स्वीकार कर लिया। PCIT आदेश रद्द कर दिया। परिणामस्वरूप 26 दिसंबर 2018 के कर निर्धारण आदेश को बहाल कर दिया।
आदेश से व्यथित होकर विभाग ने अपील की। विभाग ने ITAT के आदेश में खामियों को उजागर करते हुए तर्क दिया कि आईटीएटी पीसीआईटी की इस टिप्पणी को समझने में विफल रहा कि AO ने करदाता द्वारा AY 2016-17 के लिए किए गए असुरक्षित ऋण लेनदेन की वास्तविकता लोन योग्यता की जांच नहीं की।
PCIR ने यह मानते हुए सही कहा कि एओ ने कोई जांच नहीं की, क्योंकि उसने आयकर उपनिदेशक (जांच), नोएडा (DDIT) द्वारा भेजी गई सूचना का कोई संज्ञान नहीं लिया।
करदाता ने तर्क दिया कि ITAT ने PCIT के आदेश को नकारते हुए सही किया, क्योंकि एओ ने उचित जांच की। सभी प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद विधिवत मूल्यांकन आदेश तैयार किया गया।
अदालत ने कहा कि PCIT या CIT अन्य बातों के साथ-साथ धारा 263 के तहत पुनर्विचार शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं, यदि दोहरी शर्तों का प्रतिबंध संतुष्ट है, यानी विचाराधीन मूल्यांकन आदेश गलत है और राजस्व के हितों के लिए हानिकारक है। इसके अलावा, धारा 263 ऐसे पैरामीटर भी निर्धारित करती है, जो मूल्यांकन आदेश को गलत और राजस्व के हितों के लिए हानिकारक बना देंगे।
अदालत ने माना कि मूल्यांकन आदेश कहीं भी जांच या सत्यापन के किसी भी तत्व को प्रतिबिंबित नहीं करता। विचाराधीन लोन लेनदेन के बारे में चर्चा पूरी तरह से गायब है। मूल्यांकन रिकॉर्ड से यह भी पता चलता है कि एओ ने लेन-देन की वास्तविकता और साख का पता लगाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया, जो डीडीआईटी जांच रिपोर्ट और मेसर्स उपज लीजिंग एंड फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड की मूल्यांकन कार्यवाही से सामने आए निष्कर्षों के मद्देनजर विचारणीय है।
अदालत ने कहा,
"यह सामने आता है कि वर्तमान मामला ऐसा है, जहां एओ न केवल DDIT जांच रिपोर्ट और उपज लीजिंग एंड फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड की मूल्यांकन कार्यवाही के बारे में कोई निष्कर्ष बताने में विफल रहा, बल्कि उक्त रिपोर्ट में उल्लिखित लोन लेनदेन की वास्तविकता और साख के बारे में हाइलाइट किए गए पहलुओं की भी जांच करने में विफल रहा। इसलिए यह न्यूनतम जांच है, जिसकी कम से कम एओ द्वारा की जाने की उम्मीद थी।”
केस टाइटल- पीसीआईटी बनाम पैरामाउंट प्रॉपबिल्ड प्राइवेट लिमिटेड