दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन सिमी की 'इस्लामिक मूवमेंट' पत्रिका के प्रूफरीडर को जमानत दी

Update: 2024-09-13 07:24 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने UAPA के आरोपी को नियमित जमानत दी, जिस पर प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) का सदस्य होने का आरोप है।

सिमी द्वारा प्रकाशित इस्लामिक मूवमेंट नामक पत्रिका को पुलिस द्वारा सिमी मुख्यालय पर की गई छापेमारी के दौरान जब्त किया गया। आरोप है कि पत्रिका भड़काऊ और उत्तेजक प्रकृति की है। आरोपी इसके संपादकीय बोर्ड का हिस्सा था।

जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने कहा कि एफआईआर में आवेदक के खिलाफ एकमात्र आरोप यह प्रतीत होता है कि वह इस्लामिक मूवमेंट पत्रिका के संपादकीय बोर्ड में था।

इसने जावेद अहमद हजाम बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के मामले का हवाला दिया, जहां न्यायालय ने कहा कि धारा 153A IPC को आकर्षित करने के लिए अभियोजन पक्ष को विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने के लिए अभियुक्त की मंशा के अस्तित्व को प्रथम दृष्टया स्थापित करने की आवश्यकता है।

यह माना गया कि किसी पत्रिका या पुस्तक में शब्दों के प्रभाव को उचित, दृढ़-मन वाले व्यक्ति के मानकों से आंका जाना चाहिए न कि कमज़ोर और अस्थिर दिमाग वाले व्यक्ति के मानकों से।

हाईकोर्ट ने नोट किया कि आवेदक की भूमिका एक प्रूफ़रीडर की हैसियत से उनकी पत्रिका को प्रकाशित करने में मदद करना था न कि लेखक के रूप में। इसने टिप्पणी की पुलिस गवाहों के शुरुआती बयानों के अनुसार, आवेदक के खिलाफ़ उकसावे का कोई विशेष कार्य नहीं बताया गया, जिसके कारण मूल एफआईआर दर्ज की गई। इसके अलावा, आवेदक की भूमिका उनकी पत्रिका के प्रकाशन में मदद करना था और वह भी एक लेखक की हैसियत से नहीं बल्कि एक प्रूफ़रीडर के रूप में।

आवेदक पर UAPA की धारा 3, 10, 13 के साथ-साथ धारा 153ए आईपीसी और धारा 153बी आईपीसी के तहत गैरकानूनी संगठन का सदस्य होने और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए आरोप लगाया गया। आवेदक को 7 मार्च 2002 को घोषित अपराधी घोषित किया गया।

स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को 27 सितंबर 2001 को UAPA के तहत गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था। 27-28 सितंबर की मध्यरात्रि को पुलिस ने सिमी मुख्यालय पर छापा मारा था।

आवेदक ने तर्क दिया कि जब पुलिस छापेमारी कर रही थी तब वह मौके पर मौजूद नहीं था। उसने तर्क दिया कि उसकी गिरफ्तारी गलत पहचान का मामला है। आरोपी का नाम उसके नाम से मेल नहीं खाता। उन्होंने तर्क दिया कि यह महज टाइपोग्राफिकल त्रुटि का मामला नहीं है बल्कि यह किसी दूसरे आरोपी का मामला है।

इसके अलावा उन्होंने तर्क दिया कि जहां वह आमतौर पर रहता है, वहां उद्घोषणा की सूचना देने के बजाय इसे सिमी के मुख्यालय को भेजा गया।

दूसरी ओर राज्य ने तर्क दिया कि आवेदक सिमी का सक्रिय सदस्य था। यह कहा गया कि सिमी मुख्यालय में राष्ट्रविरोधी भाषण दिए जाने के बारे में गुप्त सूचना मिलने के बाद पुलिस ने छापा मारा था और आवेदक भागने में सफल रहा।

हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि जब 27-28 सितंबर 2001 की रात को सह-आरोपियों को पकड़ा गया तो एफआईआर में आवेदक के मौके पर मौजूद होने या वहां से भागने का नाम नहीं था।

इसने उल्लेख किया कि एफआईआर दर्ज होने के 22 दिन बाद ही एक गवाह के बयान में आवेदक का नाम दर्ज किया गया था।

उद्घोषणा की सूचना की तामील के मुद्दे पर इसने सुनील त्यागी बनाम दिल्ली सरकार और अन्य 2021 के मामले का हवाला दिया, जहां दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने देखा था कि धारा 82 CrPc के तहत फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा की सूचना की तामील के लिए प्रकाशन के तीन तरीके आवश्यक हैं। प्रकाशन के तीन तरीके हैं किसी ऐसे प्रमुख स्थान पर सार्वजनिक रूप से पढ़ना जहां व्यक्ति आमतौर पर रहता है, घर के किसी प्रमुख हिस्से में चिपकाना और न्यायालय भवन के किसी प्रमुख हिस्से में चिपकाना।

इस मामले का हवाला देते हुए यह देखा गया कि प्रकाशन के तीन तरीकों में से एक का भी पालन न करने से पूरी प्रक्रिया निरर्थक हो जाएगी। आवेदक के घोषित अपराधी होने पर उन्होंने देखा कि प्रक्रिया सर्वर के बयान से संकेत मिलता है कि सर्वर सिमी के मुख्यालय गया था और वह कार्यालय आवेदक का नहीं था जिससे प्रक्रिया निष्पादित नहीं हुई।

इसके अलावा, उसकी गलत पहचान के संबंध में उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट को इस पर गौर करना चाहिए। वह जमानत के चरण के दौरान इस पहलू पर विचार नहीं कर सकता।

मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए न्यायालय ने आरोपी को इस शर्त पर जमानत दी कि वह 50,000 रुपये का निजी मुचलका और एक जमानतदार पेश करे।

केस टाइटल- मोहम्मद हनीफ मोहम्मद इशाक बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य

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