दिल्ली हाईकोर्ट ने कोर्ट की अवमानना अधिनियम की परिसीमा संबंधी धारा 20 को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की
दिल्ली हाईकोर्ट ने कोर्ट की अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 20 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता इस प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं कर पाया।
धारा 20 के अनुसार,
“कोई भी अदालत किसी अवमानना की कार्यवाही उस तिथि के एक वर्ष पश्चात प्रारंभ नहीं कर सकती, जिस तिथि को वह अवमानना की गई थी।”
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें उसने धारा 20 को संविधान के अनुच्छेद 13, 14 और 20 का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (LDCE) का सफल अभ्यर्थी है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी (IFS-B) के रूप में कार्यरत है। वह एक मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में पक्षकार था।
CAT ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि वरिष्ठता सूची दोबारा इस प्रकार से बनाई जाए कि LDCE के माध्यम से पदोन्नत अधिकारियों को वास्तविक पदोन्नति तिथि से पहले की कोई पदोन्नति तिथि न दी जाए।
इस आदेश को कुछ पक्षों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन याचिका खारिज हो गई।
बाद में CAT में एक याचिका अवमानना अधिनियम की धारा 12 और प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम की धारा 17 के तहत दायर की गई, जिसमें कहा गया कि CAT के आदेश का पालन नहीं हुआ।
CAT ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी किया और उसके बाद IFS (B) कैडर के अधिकारियों की समेकित वरिष्ठता सूची का मसौदा प्रकाशित किया गया।
याचिकाकर्ता ने CAT और कानून मंत्रालय को धारा 20 को रद्द करने हेतु अभ्यावेदन प्रस्तुत किया और बाद में संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 20 के उल्लंघन का हवाला देते हुए धारा 20 को असंवैधानिक घोषित करने हेतु यह याचिका दायर की।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां:
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह प्रमाणित करने में असफल रहा कि किसी विधिक प्रावधान की वैधता को चुनौती देने के लिए न्यायिक पुनर्विचार के तहत किन ठोस कानूनी आधारों की आवश्यकता होती है।
कोर्ट ने कहा कि याचिका केवल एक व्यक्तिगत असंतोष पर आधारित थी, जिसमें याचिकाकर्ता को यह आपत्ति थी कि उसे CAT की अवमानना याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया। लेकिन इस आधार पर किसी वैध अधिनियम की संवैधानिक वैधता को खारिज नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा,
“याचिका में ऐसा कोई ठोस कानूनी आधार नहीं है, जो हमें इस प्रावधान की वैधता पर विचार करने हेतु नोटिस तक जारी करने को प्रेरित करे। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में यह स्पष्ट किया गया कि किसी भी अधिनियम की वैधता को चुनौती देने के लिए उस पर संवैधानिक दृष्टिकोण से ठोस और विधिसम्मत आपत्ति होनी चाहिए। वर्तमान याचिका न केवल इससे रहित है बल्कि मौखिक प्रस्तुतियाँ भी सारहीन हैं।”
अंततः कोर्ट ने कहा कि CAT द्वारा अवमानना याचिका की सुनवाई, वरिष्ठता सूची का प्रकाशन और याचिकाकर्ता का उसमें पक्षकार न होना ये सब धारा 20 को असंवैधानिक घोषित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं।
इस प्रकार हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
टाइटल: राजेश रंजन बनाम भारत संघ एवं अन्य (W.P.(C) 4965/2025)