दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बीएसएफ अधिनियम (BSF Act), जनरल सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट (GSFC) को POCSO Act के तहत अपराधों की सुनवाई का अधिकार देता है।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने स्पष्ट किया,
“BSF Act के प्रावधान, जब POCSO Act की धारा 42A के साथ पढ़े जाते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि GSFC को ऐसे अपराधों की सुनवाई करने का अधिकार है। इस प्रकार यह दलील अस्वीकार्य है कि GSFC को POCSO अपराध की सुनवाई का अधिकार नहीं है।”
मामला
यह फैसला असम में पदस्थापित सब-इंस्पेक्टर (वेट) राकेश बाबू की याचिका पर आया, जिसने GSFC द्वारा सुनाई गई 20 साल की कठोर कैद और सेवा से बर्खास्तगी की सज़ा को चुनौती दी।
बाबू पर आरोप था कि उसने वर्ष 2021 में 10 वर्षीय बालक के साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया और घटना की जानकारी देने पर उसे जान से मारने की धमकी दी।
GSFC द्वारा दी गई सज़ा को बाबू ने प्री-कन्फर्मेशन पिटीशन के माध्यम से चुनौती दी थी, जिसे पुष्टि प्राधिकरण ने खारिज कर दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा,
कोई भी अपराध जो सामान्य आपराधिक अदालत में सुनवाई योग्य है, वह IPSO Facto सिविल अपराध माना जाएगा। यह BSF Act की धारा 2(1)(q) के तहत आता है।
इस प्रकार, GSFC को ऐसे अपराधों की सुनवाई करने का अधिकार है।
बाबू की इस दलील को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया कि उसे अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों की प्रमाणित प्रति नहीं दी गई थी। अदालत ने कहा कि यदि उसे फाइल देखने और बयानों का निरीक्षण करने का अवसर दिया गया तो उसके साथ कोई वास्तविक पूर्वाग्रह नहीं हुआ।
आदेश
अदालत ने कहा,
“हम GSFC के निर्णय में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं पाते। अतः उक्त निर्णय पूरी तरह से बरकरार रखा जाता है और याचिका खारिज की जाती है।”