बैंकों को मानहानि के लिए आरोपी के रूप में समन नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-10-29 05:17 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि बैंकों को मानहानि के लिए आरोपी के रूप में समन नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनमें अपराध के गठन के लिए आवश्यक आपराधिक मनःस्थिति या दुर्भावना की कमी होती है।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बैंकों द्वारा किसी कंपनी को धोखाधड़ी घोषित करने का कार्य जो उन्होंने अपने बैंकिंग गतिविधियों के निर्वहन और सद्भाव में किया, वह मानहानि नहीं माना जा सकता है।

कोर्ट चार बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं के बैच पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट में लंबित मानहानि के शिकायत मामले और समन आदेश को चुनौती दी गई थी। यह शिकायत रंगोली इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी ने दर्ज कराई थी।

बैंकों ने आंतरिक ऑडिट, RBI के पत्राचार और CBI के निर्देशों के बाद शिकायतकर्ता कंपनी के खाते को 'धोखाधड़ी' घोषित कर दिया जो वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित थे।

शिकायतकर्ता कंपनी ने आरोप लगाया था कि बैंक अधिकारियों ने मिलीभगत से बिना किसी सबूत के कंपनी को 'धोखाधड़ी' बताकर मानहानि की है, जिससे कंपनी को प्रतिष्ठा और वित्तीय नुकसान हुआ।

बैंक अधिकारियों ने तर्क दिया कि यह कार्रवाई बैंक के हितों की सुरक्षा के लिए सद्भाव में की गई। इसमें कंपनी के खिलाफ कोई व्यक्तिगत दुर्भावना नहीं थी।

यह भी तर्क दिया गया कि अधिकारियों पर व्यक्तिगत रूप से कोई आपराधिक मनःस्थिति (Mens Rea) नहीं लगाई जा सकती इसलिए प्रतिनिधिक दायित्व उत्पन्न नहीं होता है।

जस्टिस कृष्णा ने याचिकाएं स्वीकार करते हुए कहा कि शिकायत में लगाए गए सभी आरोपों को सही मान भी लिया जाए तो भी वे किसी ऐसे कार्य का गठन नहीं करते, जिसे मानहानि कहा जा सके।

कोर्ट ने कहा,

"चर्चा किए गए उपर्युक्त हालात स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं कि शिकायतकर्ता की कंपनी को धोखाधड़ी घोषित करने का कार्य बैंकों की व्यक्तिगत प्रतिशोध या शिकायतकर्ता को किसी भी तरह से बदनाम करने का इरादा नहीं था, बल्कि यह उनके हित में और कानून के अनुसार लिया गया एक सूचित निर्णय था। ऐसी कार्यवाही को मानहानि या आम जनता की नजरों में शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को कम करने वाला नहीं कहा जा सकता।"

कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि आपराधिक दायित्व को केवल पदनाम के आधार पर बैंक के निदेशकों या अधिकारियों पर प्रतिनिधिक रूप से तब तक नहीं थोपा जा सकता, जब तक उनके खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप न हों।

निष्कर्ष में कोर्ट ने कहा कि बैंक अधिकारियों के खिलाफ किसी भी आरोप के अभाव में उन्हें मानहानि के किसी भी कार्य के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। साथ ही उन्हें मानहानि के अपराध के लिए समन नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने बैंकों के अधिकारियों के खिलाफ शिकायत मामले और समन आदेश दोनों को रद्द करते हुए कहा,

"उपरोक्त चर्चा के आलोक मे यह माना जाता है कि शिकायत में किसी भी बैंक द्वारा मानहानि स्थापित करने के लिए कोई विशिष्ट आरोप नहीं है। इसके अलावा याचिकाकर्ता, जो बैंक के अधिकारी हैं, उन पर किसी भी कथित मानहानि के कार्य की अनुपस्थिति में कंपनी/बैंक के मामलों के लिए प्रतिनिधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।"

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