जानबूझकर मुकदमे का मूल्यांकन बढ़ाने का आरोप पर्याप्त नहीं, केस ट्रांसफर की मांग खारिज: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2025-10-18 09:23 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल इस आधार पर किसी मामले के ट्रांसफर की मांग नहीं की जा सकती कि दूसरी पार्टी ने जानबूझकर मुकदमे का मूल्यांकन बढ़ा दिया ताकि वह मामला संबंधित अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाए।

कोर्ट ने इसे पूर्वाग्रह का आरोप लगाने और केस ट्रांसफर की मांग करने का पर्याप्त आधार मानने से इनकार कर दिया।

जस्टिस गिरीश कथपालिया ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

"केवल इसलिए कि एक पक्ष अपने अभिवचनों में यह आरोप लगाता है कि दूसरे पक्ष ने जानबूझकर मुकदमे का मूल्यांकन बढ़ाया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुकदमा संबंधित ट्रायल कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर हो जाए, इस बात को इतना नहीं खींचा जा सकता कि इसका मतलब यह निकाला जाए कि अभिवचन करने वाला पक्ष संबंधित ट्रायल कोर्ट से राहत पाने के लिए आश्वस्त है। ऐसा मानना पूर्वाग्रह की आशंका को उचित ठहराने के लिए तर्कसंगत नहीं है।"

यह फैसला दो व्यक्तियों द्वारा दायर की गई याचिका पर आया, जिसमें प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज के एक आदेश को चुनौती दी गई थी।

जज ने एक इकाई के खिलाफ उनके सिविल मुकदमे को एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में स्थानांतरित करने की उनकी अर्जी को खारिज कर दिया था।

याचिकाकर्ताओं ने सीधे तौर पर संबंधित न्यायिक अधिकारी के खिलाफ पूर्वाग्रह की कोई आशंका नहीं जताई, जिसकी अदालत से मामले को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। उनका मुख्य तर्क यह था कि चूँकि विरोधी पक्ष ने मुकदमे का मूल्यांकन बढ़ाने की चाल चली ताकि वह ट्रायल कोर्ट के मौद्रिक क्षेत्राधिकार से बाहर हो जाए, इसलिए उन्हें लगता था कि उन्हें उस न्यायाधीश से अनुकूल विचार नहीं मिलेगा।

जस्टिस कथपालिया ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यदि मूल्यांकन में संशोधन का विरोध हर मामले में इस आधार पर किया जाए कि वादी ने केवल मुकदमे को ट्रायल कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर निकालने के लिए ऐसा किया तो प्रतिवादी दावा करेगा कि यह संदेह करने का कारण है कि दूसरा पक्ष संशोधन का विरोध कर रहा है, क्योंकि वह उसी ट्रायल कोर्ट से राहत पाने के लिए आश्वस्त है।

जस्टिस कथपालिया ने टिप्पणी की,

"ऐसा प्रतिरोध अंतहीन होगा। वह बेतुका होगा।"

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा व्यक्त की गई पूर्वाग्रह की आशंका को तर्कसंगत आशंका नहीं पाया। कोर्ट ने आगे कहा कि यह याचिका केवल मुकदमे की कार्यवाही को लंबा खींचने के लिए दायर की गई थी।

जस्टिस कथपालिया ने याचिका को योग्यता रहित और तुच्छ बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं पर 10,000 का जुर्माना लगाया, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति (DHCLSC) में जमा करने का निर्देश दिया गया।

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