अभिसार बिल्डवेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला Income Tax की धारा 149(1) के तहत सीमा अवधि के बाद कर निर्धारण को फिर से खोलने की अनुमति नहीं देता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया कि अभिसार बिल्डवेल मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला Income Tax Act 1961 की धारा 147/148 के तहत कर निर्धारण को धारा 149(1) के तहत निर्धारित अवधि के बाद फिर से खोलने की अनुमति नहीं देता।
धारा 149 Income Tax Act के विभिन्न प्रावधानों के तहत करदाता को नोटिस जारी करने की समय सीमा निर्धारित करती है।
आम तौर पर कर निर्धारण वर्ष की समाप्ति से 3 वर्ष बाद कर निर्धारण को फिर से खोलने का कोई नोटिस जारी नहीं किया जा सकता। विशिष्ट मामलों में (जहां विभाग को जानकारी है कि कर निर्धारण से छूटी आय 50 लाख रुपये या उससे अधिक है) 10 वर्ष बाद कर निर्धारण को फिर से खोलने का कोई नोटिस जारी नहीं किया जा सकता।
1 अप्रैल, 2021 के बाद शुरू की गई पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही को धारा 149(1) के पहले प्रावधान में निर्दिष्ट आधारभूत परीक्षणों को पूरा करना होगा। यानी पुनर्मूल्यांकन कार्रवाई को न केवल धारा 149 के संदर्भ में निर्मित समय-सीमा को पूरा करना होगा बल्कि धारा 153ए और 153सी के तहत समय-सीमा को भी पूरा करना होगा (जैसा कि वे वित्त अधिनियम, 2021 के लागू होने से पहले थे)।
इस मामले में याचिकाकर्ता इस वर्ष धारा 148 के तहत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस से व्यथित था, जिसमें अधिनियम की धारा 153ए के तहत खोज मूल्यांकन रद्द करने के बाद मूल्यांकन वर्ष (एवाई) 2015-16 के संबंध में कार्यवाही शुरू करने का प्रस्ताव था।
मूल्यांकन अधिकारी (AO) ने शार्प ग्रुप पर की गई तलाशी के बाद याचिकाकर्ता को धारा 153ए के तहत नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता की आय ₹11,43,11,530/- निर्धारित करते हुए मूल्यांकन आदेश पारित किया था। हालांकि, आयकर आयुक्त (अपील) ने इस आदेश को खारिज कर दिया।
राजस्व और बाद में हाईकोर्ट ने राजस्व की अपीलों को खारिज कर दिया। इसके बाद, याचिकाकर्ता को आरोपित नोटिस जारी किए गए। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि धारा 148ए(बी) के तहत नोटिस धारा 148 के तहत पुनर्मूल्यांकन नोटिस से पहले धारा 149 के तहत निर्धारित अवधि से परे जारी किया गया।
दूसरी ओर राजस्व ने तर्क दिया कि धारा 150 के तहत गैर-बाधा खंड के आधार पर आरोपित नोटिस निर्धारित समय अवधि के भीतर थे। इसने प्रधान आयकर आयुक्त, केंद्रीय-3 बनाम अभिसार बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड (2024) पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि ऐसे मामलों में जहां अधिनियम की धारा 153ए के तहत कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती राजस्व उपायहीन नहीं है और धारा 147 और 148 का सहारा ले सकता है।
जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि राजस्व का तर्क इस धारणा पर आधारित था कि धारा 153ए की कार्यवाही रद्द करने के खिलाफ उसकी अपील को खारिज करने वाला हाईकोर्ट का फैसला अधिनियम की धारा 147 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए निष्कर्ष और निर्देश शामिल हैं।
उन्होंने टिप्पणी की,
“हम यह स्वीकार करने में असमर्थ हैं कि आईटीए संख्या 807/2023 [राजस्व की अपील खारिज करने वाला 22.12.2023 का आदेश] में इस न्यायालय के निर्णय को अधिनियम की धारा 150 के अर्थ में निष्कर्ष और निर्देश के रूप में पढ़ा जा सकता है, जो राजस्व को अधिनियम की धारा 148 के तहत नोटिस जारी करने की अनुमति देता है, जो अधिनियम की धारा 149(1) के तहत निर्धारित अवधि से परे है।”
इसके बाद इसने अभिसार बिल्डवेल में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का अवलोकन किया और कहा कि यह उन मामलों में भी मूल्यांकन को फिर से खोलने की अनुमति नहीं देता है, जहां अधिनियम की धारा 147 और 148 को लागू करने के लिए आवश्यक शर्तें पूरी नहीं होती हैं।
खंडपीठ ने कहा,
“उक्त निर्णय अधिनियम की धारा 149(1) के तहत निर्धारित अवधि से परे मूल्यांकन को फिर से खोलने की अनुमति नहीं देता है।”
एआरएन इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया लिमिटेड बनाम सहायक आयकर आयुक्त सेंट्रल सर्किल-28 दिल्ली एवं अन्य (2024) मामले पर भरोसा किया गया, जहां यह माना गया कि अभिसार बिल्डवेल में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्मूल्यांकन आरंभ करने की दी गई स्वतंत्रता पुनर्मूल्यांकन से संबंधित प्रावधानों के अनुपालन के अधीन थी।
इस प्रकार अभिसार बिल्डवेल में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का उद्देश्य केवल यह बताना था कि सर्च असेसमेंट को रद्द करने से राजस्व को पुनर्मूल्यांकन करने की अपनी शक्ति से वंचित या वंचित नहीं किया जाएगा और जो स्वतंत्र रूप से मौजूद थी। सुप्रीम कोर्ट ने वैधानिक नुस्खों को ध्यान में रखते हुए जो पुनर्मूल्यांकन की शुरुआत को प्रभावित करते हैं उस अवलोकन को यह प्रदान करके योग्य बनाया कि ऐसी कार्रवाई कानून के अनुसार होनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने माना कि राजस्व विभाग का यह तर्क कि अधिनियम की धारा 149(1) के तहत निर्धारित समय अवधि, जिसके भीतर अधिनियम की धारा 148 के तहत नोटिस जारी किया जा सकता है, मामले के तथ्यों में लागू नहीं है, अनुचित है।
इस प्रकार दलील स्वीकार की गई और पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही रद्द की।
केस टाइटल: संजय सिंघल बनाम सहायक आयकर आयुक्त, सेंट्रल सर्किल 15, दिल्ली