किसी वकील पर उसकी राय के कारण हुए वित्तीय नुकसान के लिए तब तक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब तक कि धोखाधड़ी करने का इरादा मौजूद न हो: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Update: 2024-11-19 09:24 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि किसी वकील की राय ने किसी व्यक्ति या संस्था को वित्तीय नुकसान पहुंचाया, उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का आधार नहीं हो सकता।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि इस बात के कुछ सबूत होने चाहिए कि उक्त कृत्य संस्था को धोखा देने के एकमात्र इरादे से किया गया। इसमें अन्य साजिशकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी थी।

यह टिप्पणी खंडपीठ ने रामकिंकर सिंह नामक पेशे से वकील द्वारा धारा 482 CrPC के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए की, जिसमें उनके खिलाफ आरोपपत्र और एफआईआर सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी गई।

संक्षेप में याचिकाकर्ता को बेमेतरा में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के पैनल वकील के रूप में उनकी भूमिका के आधार पर एफआईआर में फंसाया गया। मूलतः याचिकाकर्ता ने उधारकर्ता द्वारा गिरवी रखी गई कृषि भूमि के लिए गैर-भार प्रमाण पत्र जारी किया,जिसका उपयोग बाद में 3 लाख रुपये के किसान क्रेडिट कार्ड लोन को सुरक्षित करने के लिए किया गया।

बाद में उधारकर्ता लोन चुकाने में विफल रहा और जांच से पता चला कि भूमि के दस्तावेज (जिसके आधार पर लोन दिया गया था) जाली थे। अगस्त 2018 में SBI के शाखा प्रबंधक ने उधारकर्ता द्वारा धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए FIR दर्ज की। पुलिस द्वारा दायर पूरक आरोपपत्र में याचिकाकर्ता को मामले में आरोपी बनाया गया, जिसमें उस पर फर्जी दस्तावेजों को प्रमाणित करने का आरोप लगाया गया।

इससे पहले याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दायर करके अपने खिलाफ आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी, जिसे बिना किसी कारण के खारिज कर दिया गया। इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि किसी वकील के खिलाफ दायित्व तभी बनता है, जब वकील बैंक को धोखा देने की योजना में सक्रिय भागीदार हो (सीबीआई, हैदराबाद बनाम के. नारायण राव 2019 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया)।

निचली अदालत के आदेश को सही ठहराते हुए राज्य/प्रतिवादी नंबर 1 की ओर से पेश हुए डिप्टी एडवोकेट जनरल शशांक ठाकुर ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, क्योंकि यह प्रथम दृष्टया स्थापित होता है कि याचिकाकर्ता ने सह-आरोपी/उधारकर्ता द्वारा गिरवी रखी गई भूमि की झूठी तलाशी रिपोर्ट तैयार की थी।

यह भी तर्क दिया गया कि जांच पूरी तरह से कानून के अनुसार की गई, जिसमें गवाहों के बयान दर्ज किए गए। सबूत/दस्तावेज एकत्र किए गए, जो प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध का खुलासा करते हैं। बैंक के वकील ने भी डिप्टी एडवोकेट जनरल द्वारा दिए गए तर्कों का समर्थन किया।

उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करते हुए खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने केवल सर्च रिपोर्ट दी थी तथा रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो प्रतिवादी बैंक को धोखा देने के लिए उसके और अन्य सह-आरोपी व्यक्तियों के बीच सक्रिय मिलीभगत का संकेत देता हो।

अदालत ने आगे कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी बैंक को वित्तीय नुकसान पहुंचाने के लिए अपने कर्तव्यों का लापरवाही से पालन किया। इसके अलावा, अदालत ने पाया कि प्रतिवादी बैंक ने याचिकाकर्ता को अपने पैनल वकील के रूप में बनाए रखा।

अदालत ने कहा कि यदि वह लापरवाह या अविश्वसनीय होता, तो प्रतिवादी बैंक निश्चित रूप से उसे अपने पैनल से हटा देता।

इसके अलावा यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता का नाम पूरक आरोप पत्र में सामने आया, क्योंकि उसका नाम एफआईआर में नहीं था, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप तय करने और पुनर्विचार याचिका खारिज करने के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश याचिकाकर्ता के लिए अलग रखे जाने योग्य थे, विशेष रूप से के. नारायण राव (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के प्रकाश में।

परिणामस्वरूप, विवादित आदेशों को अलग रखा गया और आवेदन को स्वीकार किया गया।

केस टाइटल- रामकिंकर सिंह बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य

Tags:    

Similar News