छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 'सिकल सेल एनीमिया' से पीड़ित नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 20+ सप्ताह के गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित 17 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के बीस सप्ताह से अधिक के भ्रूण को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि गर्भावस्था को जारी रखने से नाबालिग लड़की पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभाव पड़ने की संभावना है, न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की एकल पीठ ने कहा - “ऐसी परिस्थितियों में, यदि पीड़िता को गर्भावस्था और प्रसव की पूरी प्रक्रिया से गुजरने की अनुमति दी जाती है, तो इससे न केवल पीड़िता पर, बल्कि भ्रूण पर भी बहुत अधिक शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है।”
मामले में न्यायालय ने शुरू में उन स्थितियों को नियंत्रित करने वाले प्रावधानों की जांच की, जब पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है। चिकित्सकीय गर्भपात अधिनियम की धारा 3 का अध्ययन करने के बाद, न्यायालय का विचार था कि गर्भावस्था को समाप्त करना पूरी तरह से वर्जित नहीं है और प्रावधान के तहत परिकल्पित परिस्थितियों में यह अनुमेय है।
कोर्ट ने कहा,
“इस मामले में, याचिकाकर्ता/नाबालिग पीड़िता की उम्र केवल 17 वर्ष है, वह बलात्कार की शिकार है और वह अपनी गर्भावस्था को जारी नहीं रखना चाहती है। डॉक्टरों की टीम ने भी इस आशय की रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि गंभीर एनीमिया के साथ किशोरावस्था में गर्भावस्था को जारी रखने से याचिकाकर्ता पर महत्वपूर्ण शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक परिणाम हो सकते हैं।”
पीठ ने आगे कहा कि यदि गर्भपात की अनुमति नहीं दी जाती है, तो याचिकाकर्ता को बाद में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की जटिलताएं होने की संभावना से इनकार नहीं किया। इसने यह भी देखा कि हालांकि याचिकाकर्ता गंभीर एनीमिया से पीड़ित है, लेकिन डॉक्टरों की टीम ने राय दी कि दवा के बाद वह शारीरिक रूप से स्वस्थ हो जाएगी।
इसके बाद, जस्टिस चंद्रवंशी ने गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की एक श्रृंखला पर भरोसा किया, जिसमें सुचिता श्रीवास्तव और अन्य बनाम चंडीगढ़ प्रशासन, एक्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, मीरा संतोष पाल और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य, तपस्या उमेश पिसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य तथा श्रीमती ए बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य शामिल हैं।
कानून की उपरोक्त स्थिति पर विचार करने के पश्चात न्यायालय ने कानूनी उदाहरणों की पृष्ठभूमि में तथ्यों की जांच की तथा पाया कि -
“इस मामले में, याचिकाकर्ता 20 सप्ताह और चार दिन की गर्भवती है तथा उसकी आयु मात्र 17 वर्ष है। वह यौन उत्पीड़न की शिकार हुई है। यह भी कहा गया है कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है तथा उसकी मां गृहिणी है, इसलिए यह माना जा सकता है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर है।”
यह भी माना गया कि यदि उसे बलात्कार के परिणामस्वरूप गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो यह उसकी स्वतंत्रता तथा शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार के विरुद्ध होगा।
इसलिए, याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत को स्वीकार किया गया। याचिकाकर्ता को सीएमएचओ से संपर्क करने की अनुमति दी गई, जिन्हें यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि सभी अपेक्षित औपचारिकताओं को पूरा करने के पश्चात याचिकाकर्ता की गर्भावस्था समाप्त की जाए तथा एनीमिया के लिए दवा के साथ-साथ उचित चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाएं।
केस टाइटल: एबीसी (नाबालिग) प्राकृतिक संरक्षक के माध्यम से XYZ बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य।
केस नंबर: डब्ल्यूपीसी नंबर 6041 ऑफ 2024