किसी विशेष परियोजना के लिए नियोजित कर्मचारी परियोजना समाप्त होने के बाद 'स्थायी कर्मचारी' का दावा नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2021-11-16 09:13 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब एक कर्मचारी को किसी विशेष परियोजना के लिए नियोजित किया जाता है, तो जब परियोजना समाप्त हो जाती है, उस कर्मचारी की सेवाएं भी समाप्त हो जाती हैं और इसलिए ऐसे कामगार को स्थायी दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने लाल मोहम्मद एंड अन्य बनाम इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड एंड अन्य एआईआर 2007 एससी 2230 मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की। इसमें यह माना गया था कि ऐसे कामगार को कंपनी का कर्मचारी नहीं माना जा सकता है जिसके तहत कई अन्य परियोजनाएं चलती हैं।

पूरा मामला

याचिकाकर्ता को इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन इंटरनेशनल लिमिटेड (इरकॉन) द्वारा शुरू में मध्य प्रदेश (1984 में) में छह महीने की अवधि के लिए आकस्मिक आधार पर एक चपरासी के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद इसे एक समेकित के साथ मासिक आधार पर 196 रुपये का वेतन और महंगाई भत्ता के साथ फिर से नियुक्त किया गया था।

इसके अलावा याचिकाकर्ता को इसे पूरा करने के बाद अनपरा परियोजना, जिला - मिर्जापुर, यू.पी. में काम पर लगा दिया गया था। इसे वेतनमान पर नियुक्त किया गया जो कि 196-237 रुपए ग्रेड पे में था। यह दिनांक 29.05.1998 के एक आदेश द्वारा किया गया था।

यह काम याचिकाकर्ता ने चार साल की अवधि तक जारी रखा और इसके बाद उसे नियमित वेतनमान में लाया गया। तत्पश्चात याचिकाकर्ता को 1993 में विंध्य नगर परियोजना से रिहंद नगर परियोजना, जिला-सोनभद्र उ0प्र0 में स्थानान्तरित किया गया।

हालांकि, 1998 में याचिकाकर्ता को एक नोटिस दिया गया था कि फरवरी 1998 से उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया जाएगा। इसके बाद इसने एक औद्योगिक विवाद खड़ा किया और पिछले वेतन के साथ उनकी बहाली के लिए प्रार्थना की।

सुलह की कार्यवाही विफल रही और मामला भारत सरकार द्वारा केंद्र सरकार के न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय, लखनऊ को भेजा गया, जिसने 23 नवंबर, 2020 को निर्णय पारित किया और इसलिए वर्तमान रिट याचिका दायर की गई।

प्रस्तुतियां

याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि उसे एक नियमित कर्मचारी का दर्जा दिया गया था क्योंकि उसे अप्रैल 1984 से नियमित कर्मचारी का वेतनमान दिया गया था और आगे मई 1986 और अप्रैल 1989 में, उन्हें कुछ निश्चित दर्जा दिया गया था और इसलिए उनकी सेवाओं को समाप्त नहीं किया जा सकता।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों के वकील एडवोकेट तानिया पांडे ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को नियमित वेतनमान मिलने का यह मतलब नहीं है कि याचिकाकर्ता को नियमित कर दिया गया है। उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता परियोजना का कर्मचारी था न कि कंपनी का।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने शुरुआत में लाल मोहम्मद एंड अन्य बनाम इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड एंड अन्य एआईआर 2007 एससी 2230 मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख किया।

इसमें कोर्ट ने स्पष्ट रूप से यह निर्धारित किया था कि जब एक कामगार किसी विशेष परियोजना के लिए नियोजित होता है, तो जब परियोजना समाप्त हो जाती है तो उस कर्मचारी की सेवाएं भी समाप्त हो जाती हैं और इसलिए इसे स्थायी दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि लाल मोहम्मद मामले (सुप्रा) में, इरकॉन के कुछ कर्मचारी को सेवाओं से हटा दिया गया था, ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया था। हालांकि, इसके बाद मुद्दों का निर्णय प्रतिवादी-कंपनी (इरकॉन) पक्ष में और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आया गया था।

कर्मचारी/याचिकाकर्ता इसी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट चले गए थे, जहां सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण बेंच का फैसला सही था।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता कंपनी की सेवाओं में नियमित होने के हकदार नहीं हैं क्योंकि वे कंपनी के कर्मचारी नहीं हैं। हालांकि, यह माना गया कि याचिकाकर्ता मुआवजे के हकदार हैं और इसके बाद अपीलें खारिज कर दी गईं।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ यह पाते हुए कि याचिकाकर्ता के मामले में लाल मोहम्मद मामले के साथ समानता थी, अदालत ने रिट याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि रिट याचिका में कोई हस्तक्षेप जरूरी नहीं है।

केस का शीर्षक - बिपिन बनाम भारत संघ एंड तीन अन्य

याचिकाकर्ता के वकील:- राघवेंद्र कुमार सिंह

प्रतिवादी के लिए वकील: - ए.एस.जी.आई., अन्नपूर्णा सिंह, एडवोकेट तानिया पांडे

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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