सेल डीड/वसीयत के गवाह के लिए यह जानना ज़रूरी नहीं है कि दस्तावेज़ में क्या लिखा है, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
''गवाहों के लिए यह जरूरी नहीं है कि उन्हें पता हो कि दस्तावेजों में क्या निहित है।''
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेल डीड और वसीयत जैसे दस्तावेजों के गवाहों के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि वह यह जानते हों कि उन दस्तावेजों में क्या निहित है।
इस मुकदमे में वादी ने इस घोषणा के लिए प्रार्थना की थी कि उसे सूट की संपत्ति के कब्जे की मालिक घोषित किया जाए और यह भी प्रार्थना की थी कि प्रतिवादियों को आदेश दिया जाए कि उसके कब्जे में दखल न दें।
यह भी दलील दी गई थी कि प्रतिवादियों के पक्ष में की गई दो सेल-डीड और वसीयतनामा, नकली और धोखाधड़ी के दस्तावेज हैं और वह वादी के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। ट्रायल कोर्ट ने सूट का फैसला वादी के पक्ष में सुनाया था। हालांकि हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए सूट को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील ''हेमकुंवर बाई बनाम सुमेरसिंह'' में वादी की तरफ से दलील दी गई कि इन दस्तावेजों के दोनों गवाह ने कहा है कि उन्हें दस्तावेजों की सामग्री या आशय या अंशों के बारे में पता नहीं था, जब उन्होंने गवाह के रूप में इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। मामले में एक अन्य विवाद यह था कि क्या रतनकुंवरबाई, जो एक अनपढ़ महिला थीं और कैंसर से पीड़ित थीं, इन दस्तावेजों को निष्पादित नहीं कर सकती थीं।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का निरीक्षण करते हुए उल्लेख किया है कि गवाहों में से एक गवाह ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इन सेल-डीड/बिक्री-डीड और वसीयत के पंजीकरण के समय, संबंधित उप-रजिस्ट्रार ने मृतक के समक्ष संक्षेप में तीनों दस्तावेजों की विषय वस्तु को पढ़ा था।
हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पीठ ने कहा कि-
"यह तर्क दिया गया है कि इन दोनों गवाहों ने कहा है कि उन्हें दस्तावेजों की सामग्री या विषय-वस्तु के बारे में पता नहीं था, जब उन्होंने गवाह के रूप में इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। गवाहों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह यह जानते हों कि उन दस्तावेजों में क्या निहित है। इसके अलावा, जब इन गवाहों ने कहा है कि सब-रजिस्ट्रार ने मृतक को दस्तावेजों का सार बताया था, तो ऐसे में वे पंजीकरण के समय इन दस्तावेजों की प्रकृति से अवगत हो गए थे। वास्तव में अंतर सिंह और लक्ष्मण सिंह, दोनों ने विचार के स्थानांतरण के संबंध में बयान दिया है।"