सीपीसी की धारा 92 के तहत आने वाले मुकदमे का फैसला ट्रायल कोर्ट के समक्ष किया जाना चाहिएः केरल हाईकोर्ट

Update: 2022-09-28 05:42 GMT

केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 92 के तहत आने वाले मुकदमे का फैसला ट्रायल कोर्ट के समक्ष किया जाना चाहिए।

जस्टिस ए बदरुद्दीन ने तर्क दिया कि सीपीसी की धारा 92 के तहत मुकदमा केवल अदालत की अनुमति से चलाया जा सकता है और यदि पक्षकार को मुकदमे को अंतिम रूप देने तक आरोपी बनाया जाता है और अगर अंततः यह पाया जाता है कि सूट को अनुमति की आवश्यकता है तो मुकदमे की पूरी कवायद व्यर्थ हो जाएगी, क्योंकि अनुमति के अभाव में वाद स्वयं वर्जित हो जाता है।

यहां याचिकाकर्ता यह तय करने के लिए आवेदन की अस्वीकृति से व्यथित है कि क्या उनके द्वारा दायर मूल मुकदमा सीपीसी की धारा 92 के मद्देनजर सुनवाई योग्य है। मुकदमे में याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादियों को अलारा श्री भद्रकाली मंदिर, पेरुम्पाजुथूर के प्रशासन को जबरदस्ती लेने और मंदिर सुधार के हिस्से के रूप में श्रीकोविल के निर्माण को जबरन बाधित करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग की।

निचली अदालत ने माना कि मामला 'प्रारंभिक' नहीं है और मामले के तथ्यों में जाने के बिना फैसला नहीं किया जा सकता।

इस पर एडवोकेट वी.जी. याचिकाकर्ता की ओर से अरुण, इंदुलेखा जोसेफ, वी. जया रागी और नीरज नारायण ने कहा कि यह पता लगाने के लिए कि क्या कोई मुकदमा सीपीसी की धारा 92 के दायरे में आएगा, केवल वाद में दिए गए कथनों को देखा जाना चाहिए और यही कानूनी सवाल है।

हाईकोर्ट ने श्रीनारायण विद्या मंदिर ट्रस्ट और अन्य बनाम उन्नीकृष्णन और अन्य (2022) और पं. जॉन जैकब और अन्य बनाम फादर एन.आई. पौलोज एवं अन्य के फैसलों पर भरोसा किया, जहां यह निर्धारित किया गया कि सीपीसी की धारा 92(1) के अंतर्गत अनुमति प्रदान करने के मामले में केवल वाद-पत्र के अभिकथनों पर ही विचार करने की आवश्यकता है। यह जोड़ा गया कि यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है कि क्या वाद सीपीसी की धारा 92 के अंतर्गत आता है और अगर यह पाया जाता है कि वाद में अनुमति की आवश्यकता है तो इसमें शामिल पक्ष को उचित न्यायालय में अनुमति याचिका के साथ वाद दायर करने का अवसर दिया जाना चाहिए और मुकदमा को अनुमति मिलने के बाद ही आगे बढ़ाया जा सकता है।

तदनुसार, कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में वादी के कथनों और राहत की प्रकृति को इस मुद्दे पर निर्णय लेते समय विचार करने की आवश्यकता है कि क्या मुकदमा सीपीसी की धारा 92 के तहत सुनवाई योग्य है और कहा कि इसे ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर किया जाना है।

इस प्रकार मुंसिफ कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया और मुंसिफ को उक्त मुद्दे को पहले मुद्दे के रूप में सुनने और तय करने और गुण-दोष के आधार पर आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

एडवोकेट अजीत जी. अंजारलेकर, जी.पी. प्रतिवादियों की ओर से शिनोद, विनोद रवींद्रनाथ, मीना और गोविंद पद्मनाभन उपस्थित हुए।

केस टाइटल: सदाशिवन और अन्य बनाम सदाशिवन नायर और अन्य।

साइटेशन: लाइव लॉ (केर) 503/2022 

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