'हम वर्तमान सरकार की नीतियों को तय करने में असमर्थ हैं और आप शाहजहां और औरंगजेब की नीतियों में त्रुटि की ओर इशारा कर रहे हैं?': दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई

Update: 2021-12-15 10:37 GMT
हम वर्तमान सरकार की नीतियों को तय करने में असमर्थ हैं और आप शाहजहां और औरंगजेब की नीतियों में त्रुटि की ओर इशारा कर रहे हैं?: दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाई

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मंदिरों के निर्माण/मरम्मत के लिए मुगल शासकों द्वारा रियायतें देने की नीतियों से संबंधित 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब में एनसीईआरटी (NCERT) द्वारा प्रकाशित सामग्री को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता को फटकार लगाई।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने शुरुआत में टिप्पणी की,

"हम सरकार की वर्तमान नीतियों को तय करने में असमर्थ हैं और आप शाहजहां और औरंगजेब की कुछ नीतियों में त्रुटि की ओर इशारा कर रहे हैं? क्या इसे तय करना हाईकोर्ट का काम है?"

याचिकाकर्ता संजीव विकल ने अधिवक्ता हितेश बैसला के माध्यम से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

यह प्रस्तुत किया गया कि कक्षा 12 वीं की एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तक में 'भारतीय इतिहास के विषय (भाग II)' शीर्षक वाले एक अध्याय में उल्लेख किया गया है कि जब युद्धों के दौरान मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था, तब भी मरम्मत कार्यों को करने के लिए तत्कालीन शासकों द्वारा अनुदान जारी किया गया था।

याचिकाकर्ता का मामला था कि यह तथ्यात्मक रूप से गलत है और शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल के दौरान मंदिरों के निर्माण/मरम्मत के लिए कोई रियायत नहीं दी गई थी।

बेंच ने टिप्पणी की,

"यदि आप जनहित याचिका चैंपियन हैं, तो आपको आना चाहिए और हमें बताना चाहिए कि यहां कर चोरी हो रही है। वहां हम कार्रवाई करेंगे। आपकी समक्ष कहां तक है?"

पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट में तुच्छ जनहित याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर नाराजगी व्यक्त की।

पीठ ने कहा,

"रात में आपको जो भी यादृच्छिक विचार आते हैं। उसे लेकर सुबह आप आते हैं और जनहित याचिका दायर करते हैं यहां वकीलों की यही स्थिति है। यह केवल दिल्ली हाईकोर्ट में हो रहा है। लगता है आपके पास बहुत खाली समय है।"

हालांकि, बिना शर्त याचिका वापस लेने की अनुमति मांगने के बाद, बेंच ने वादी पर लागत लगाने से परहेज किया।

इसके साथ ही कोर्ट ने मामले को खारिज किया।

केस का शीर्षक: संजीव विकल बनाम भारत संघ

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