गैर-पंजीकृत पार्टरनरशिप कंपनी चेक बाउंस करने के मामले में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत जारी रख सकती है : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने शुक्रवार को व्यवस्था दी कि गैर-पंजीकृत पार्टनरिशप कंपनी नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत जारी रख सकती है।
न्यायमूर्ति पी एन देशमुख और न्यायमूर्ति पुष्पा वी गणेदीवाला की खंडपीठ एकल पीठ के उस आदेश से उत्पन्न संदर्भ की समीक्षा कर रही थी, जिसमें उसने 'साई एक्यूमुलेटर इंडस्ट्रीज, संगमनेर बनाम वी सेठी ब्रदर्स, औरंगाबाद, 2016(5) एमएच. एलजे 936' के मामले में हाईकोर्ट के पूर्व के आदेश पर सवाल उठाये थे। उक्त मामले में कहा गया था कि गैर-पंजीकृत पार्टनरशिप फर्म इंडियन पार्टरनरशिप एक्ट की धारा 69(2) में वर्णित प्रतिबंध संबंधी प्रावधानों के कारण नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत जारी नहीं रख सकती।
"धारा 69(2) में कहा गया है कि किसी करार के जरिये प्राप्त अधिकार को लागू कराने के लिए किसी कंपनी या उसकी ओर से तीसरे पक्ष के खिलाफ किसी कोर्ट में कोई मुकदमा तब तक दर्ज नहीं किया जा सकता, जब तक कंपनी पंजीकृत न हो और मुकदमा करने वाले व्यक्ति को कंपनी रजिस्ट्रार के रिकॉर्ड में उस कंपनी के पार्टनर के रूप में दर्शाया न गया हो।"
इस पृष्ठभूमि में, एक गैर-पंजीकृत कंपनी ने अपीलकर्ता के रूप में चेक बाउंस करने के मामले में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा शुरू किया था। प्रतिवादी ने मुकदमे का यह कहते हुए विरोध किया था कि इंडियन पार्टनरशिप एक्ट की धारा 69(2) में वर्णित प्रतिबंध के मद्देनजर अपीलकर्ता को इस तरह की शिकायत करने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने व्यवस्था दी कि इंडियन पार्टनरशिप एक्ट की धारा 69(2) के तहत 'वाद' को 'साधारण अर्थ् के तौर पर मझा जाना चाहिए, न कि इसे आपराधिक मुकदमों में छूट प्राप्त करने की हद तक बढ़ाया जाना चाहिए।
"अस्थायी प्रकृति के प्रतिबंध को एनआई एक्ट की धारा 138 से जुड़े विवाद तक लेकर नहीं जाना चाहिए, क्योंकि एनआई एक्ट का यह प्रावधान बैंकिंग लेनदेन में विश्वास बढ़ाने के उद्देश्य से दंडात्मक प्रकृति का है।"
इस संबंध में, 'ए वी रमणैया बनाम एम. शेखरा, एएलडी(सीआरआई) 2009 2 801' मामले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की एक समन्वित पीठ के निर्णय पर भरोसा जताया गया, जिसने यह कहते अपना दृष्टिकोण मजबूत किया कि
"1932 के (इंडियन पार्टनरशिप) एक्ट की धारा 69 के तहत किये गये प्रतिबंध का उद्देश्य गैर-पंजीकृत पार्टनरशिप कंपनी को किसी करार से उत्पन्न होने वाले अधिकार को किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ इस्तेमाल करने से रोकना है, न कि क़ानून सम्मत अधिकार या किसी अन्य क़ानूनों के प्राप्त होने वाले अधिकार प्रतिबंधित करना।"
तदनुसार, हाईकोर्ट ने संबंधित संदर्भ का निम्न प्रकार से उत्तर दिया,
"नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1888 की धारा 138 के तहत आरोपी के खिलाफ मुकदमा इंडियन पार्टनरशिप एक्ट, 1932 की धारा 69 की उपधारा (2) में वर्णित प्रतिबंध से प्रभावित नहीं होगा।"
बेंच ने आगे कहा,
"एनआई एक्ट की धारा 138 में उल्लेखित 'कर्ज या अन्य देनदारी' कानूनी तौर लागू करने योग्य ऋण या अन्य देनदारी है। हालांकि एक गैर-पंजीकृत कंपनी के अनुबंध से उत्पन्न होने वाले अधिकार के इस्तेमाल पर रोक का प्रावधान कंपनियों के पंजीकरण को बढ़ावा देने तथा छोटी कंपनियों को अनिवार्य पंजीकरण से छूट देने के उद्देश्य से किया गया है, लेकिन इससे अधिकार के इस्तेमाल का अंतर्निहित गुण बदल नहीं जाता और यह कानून द्वारा प्रदत्त अधिकार के तौर पर जारी रहेगा।"
विशेष रूप से, कई हाईकोर्ट ने पहले भी इसी तरह के विचार प्रस्तुत किये हैं। ऐसे विभिन्न हाईकोर्ट और उनके फैसलों की सूची नीचे दी गयी है:
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट :- मेसर्स उत्तम ट्रेडर्स रांघरी बनाम तुलेराम उर्फ तुला राम
केरल हाईकोर्ट :- केरल अरेकानट स्टोर्स बनाम मेसर्स रामकिशोर एंड सन्स
इलाहाबाद हाईकोर्ट : गुरचरण सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट : कैपिटल लीजिंग एंड फाइनेंस कंपनी बनाम नवरत्न जैन
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट : ए वी रमणैया बनाम एम शेखरा
मुकदमे का ब्योरा :-
केस शीर्षक : नरेन्द्र बनाम बलबीरसिंह
केस नं. : क्रिमिनल एप्लीकेशन नं. 748/2018
कोरम : न्यायमूर्ति पी एन देशमुख और न्यायमूर्ति पुष्पा वी गणेदीवाला
वकील : आर एम भांगडे (अपीलकर्ता के लिए), वी एम गडकरी (प्रतिवादी के लिए)
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें