जब तक भारतीय न्यायाधीश गंभीर नहीं होंगे, झूठे हलफनामों और झूठे सबूतों का चलन न्यायपालिका को अप्रासंगिक बना सकता है: मेघालय हाईकोर्ट
मेघालय हाईकोर्ट ने बलात्कार के मामले में अभियुक्त की दोषसिद्धि की पुष्टि करते हुए कहा कि निचली अदालत को किसी भी व्यक्ति के साक्ष्य पर विश्वास न करने पर झूठी गवाही के लिए भी कदम उठाने चाहिए।
अदालत ने कहा,
"जब तक भारतीय न्यायाधीश वादकारियों और गवाहों के प्रति गंभीर नहीं हो जाते, तब तक झूठे हलफनामे दायर करने और झूठे साक्ष्य दिए जाने की मौजूदा प्रवृत्ति दिन न्यायपालिका को अप्रासंगिक बना सकती है।"
चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस डब्ल्यू डेंगदोह की खंडपीठ ने 2014 में चार साल की बच्ची के गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न से संबंधित मामले में आरोपी की दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि उन्हें परिवारों के बीच संपत्ति विवाद के कारण झूठे मामले में फंसाया गया। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों की कमी के कारण इस सबमिशन को खारिज कर दिया था।
गवाहों के बयानों पर गौर करते हुए खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की मां ने यह सुझाव देने का प्रयास किया कि पीड़िता संबंधित तिथि पर उनके निवास पर नहीं गई। अदालत ने कहा कि उसने दोनों परिवारों के बीच सीमा विवाद पर जोर देकर कहा कि उसके बेटे के खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए हैं।
खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की मां द्वारा "अपने अड़ियल बेटे को बचाने के अपने बेताब प्रयास में" पेश किए गए बल्कि मनगढ़ंत संस्करण की अवहेलना करने के लिए ट्रायल कोर्ट पूरी तरह से न्यायसंगत था।
अपीलकर्ता के भाई के बयान की भी अवहेलना की गई, क्योंकि उसने स्वीकार किया कि वह प्रासंगिक तिथि पर घटना स्थल पर नहीं था। खंडपीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की चचेरी बहन की गवाही भी इस तरह के बयान पर भरोसा करने के लिए किसी विश्वास को प्रेरित नहीं करती है।
सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि मामले में बचाव पक्ष के तीन गवाहों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित किया गया और अपीलकर्ता के मामले का समर्थन करने वाली गवाही प्रदान करने के लिए प्रभावित किया गया।
खंडपीठ ने कहा,
"अपीलकर्ता द्वारा यह दावा न करने के आलोक में कि पीड़ित प्रासंगिक तिथि पर अपीलकर्ता के आवास पर नहीं आया, जिसके बाद बचाव पक्ष के तीन गवाहों को सुना गया और अदालत में यह कहने के लिए मजबूर किया गया कि पीड़ित नहीं आया था। उनका आशय स्पष्ट था।"
अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता के कपड़े फॉरेंसिक जांच के लिए नहीं भेजकर पुलिस ने 'गंभीर चूक' की है। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया कि अगर परिस्थितियों और सबूतों से अन्यथा अपराध होने और अपीलकर्ता की संलिप्तता का पता चलता है तो जांच एजेंसी की ओर से गंभीर चूक कोई मायने नहीं रखेगी।
केस टाइटल: किंग विक्टर च. मारक बनाम मेघालय राज्य
साइटेशन: लाइवलॉ (मेग) 20/2023
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