एक अधिवक्ता द्वारा याचिका को सुनवाई योग्य बनाए रखने के संबंध में प्रश्न का उत्तर न देने का चलन निंदनीय है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2021-08-03 11:30 GMT

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अधिवक्ता के आचरण की निंदा की, जिसने न्यायालय द्वारा याचिका को सुनवाई योग्य बनाए रखने और अधिकार पृच्छा (quo warranto) आदेश जारी करने के संबंध में बार-बार पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।

न्यायमूर्ति सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति अनिल वर्मा की खंडपीठ ने 10,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए एक विशेष स्थान पर एसडीएम/एसडीओ के रूप में एक प्रशासनिक अधिकारी की पोस्टिंग और कर्तव्य के प्रदर्शन को चुनौती देने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया।

संक्षेप में तथ्य

याचिकाकर्ता द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी संख्या 4 (एक प्रशासनिक अधिकारी) को राज्य सरकार द्वारा कलेक्टर, अलीराजपुर में ट्रांसफर कर दिया गया, लेकिन अधिकारी ने जिला अलीराजपुर के कलेक्टर के रूप में ज्वाइन नहीं किया और एसडीएम / एसडीओ, कनाड़िया इंदौर के रूप में अपने कर्तव्य का पालन शुरू कर दिया।

न्यायालय के समक्ष यह आग्रह किया गया कि प्रतिवादी संख्या 4 के खिलाफ यह बताने के लिए कि वह एसडीएम / एसडीओ, कनाड़िया, इंदौर के रूप में किस अधिकार के तहत काम कर रहा है, के खिलाफ एक अधिकार पृच्छा रिट जारी किया जा सकता है।

यह आरोप लगाया गया कि एसडीओ/एसडीएम अधिकार का दुरुपयोग कर रहे हैं और आम लोगों का मजाक उड़ा रहे हैं और उन तस्वीरों को इंस्टाग्राम पर प्रकाशित कर रहे हैं। इसलिए एक अधिकार-पृच्छा रिट जारी किया जा सकता है।

राज्य सरकार ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने संबंधित अधिकारी को नामित नहीं किया है और इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि प्रतिवादी नंबर 4 की नियुक्ति पर सवाल नहीं उठाया गया है बल्कि, कनाड़िया, इंदौर नामक एक विशेष स्थान पर उनकी पोस्टिंग और ड्यूटी के प्रदर्शन पर सवाल उठाया गया है।

कोर्ट ने कहा कि,

"यह स्पष्ट रूप से अधिकार-पृच्छा रिट के दायरे से बाहर है। हम यह उल्लेख करने के लिए जल्दबाजी कर सकते हैं कि एक से अधिक अवसरों पर न्यायालय ने याचिकाकर्ता, एक प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता से पूछताछ की कि याचिकाकर्ता प्रतिवादी संख्या 4 की नियुक्ति को चुनौती नहीं दे रहा है, तो याचिका को सुनवाई योग्य बनाए रखने के लिए कैसे अधिकार-पृच्छा रिट जारी किया जा सकता है और यीचिकाकर्ता ने उसे नाम से अभियोग चलाने के लिए नहीं चुना है। दु:ख की बात है कि याचिकाकर्ता ने बार-बार पूछे जाने वाले उक्त प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।"

कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि अधिकार-पृच्छा रिट जारी करने के लिए लोकस स्टैंडी महत्वहीन है, लेकिन एक नियमित रिट याचिका को सुनवाईय योग्य बनाए रखने के लिए याचिकाकर्ता को यह दिखाना होगा कि वह "पीड़ित व्यक्ति" है।

कोर्ट ने अंत में कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा याचिका व्यक्तिगत प्रचार हासिल करने के लिए दायर की गई है। अदालत ने इस तरह याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर 10,000 हजार रुपये का जुर्माना लगाया।

केस का शीर्षक - अरुण सिंह चौहान बनाम मध्य प्रदेश राज्य एंड अन्य।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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